BHARTIYA SANSKRITI KE SANRA. PART=01
Price: ₹ 20/-



Product Detail

Author Pt Shriram sharma acharya
Dimensions 12 cm x 18 cm
Edition 2011
Language Hindi
PageLength 104
Preface भारतीय संस्कृति का मूल आधार वे शाश्वत सिद्धांत रहे हैं जिन्हें अपनाकर कोई भी व्यक्ति देवतुल्य बन सकता है एवं कोई भी राष्ट्र उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँच सकता है । यही कारण है कि पाश्चात्य कवि एवं साहित्यकारों ने प्राच्य साहित्य से उन शाश्वत सिद्धांतों को खोजकर अपने देश में फैलाने का प्रयत्न किया है । फ्रांस के विक्टर ह्यूगो ने अपनी कविता "सुप्रभाती" में उपनिषद् का अनुकरण किया है । लुइई नवें ने कहा है कि यदि ग्रीक संस्कृति ने यूरोपीय सभ्यता को प्रभावित किया है तो यह भी मानना चाहिए कि प्राचीन ग्रीक स्वयं भारतीय दर्शन से प्रेरित थे । फ्रेंच कविता लिखने वाले जोसेफ मेरी को "कालिदास"और "भवभूति" की कृतियाँ कंठस्थ थीं । प्रसिद्ध विद्वान लुई जेकोलिओ ने बहुत सी वैदिक "ऋचाओं", "मनुस्मृति"और तमिल कृति "कुराल" के अनुवाद किए । उन्होंने अपनी रचना "सन्स ऑफ गॉड" में वेदों की प्रशंसा करते हुए विकास सिद्धांत को मान्यता प्रदान की । अनातोले ने बुद्ध में दुखी मानवता के सर्वोत्कृष्ट सलाहकार और मधुरतम त्राणदाता के दर्शन किए । ब्रिटिश कवि जीन्स भारत में भाग्य आजमाने अथवा धन इकट्ठा करने नहीं, वरन भारतीय संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करके उसे पश्चिम में पहुँचाने के उद्देश्य से आए थे । ग्रीक-लैटिन, फारसी, अरबी एवं हिब्रू के पंडित जीन्स के मन में भारतीय सभ्यता के प्रति बड़ा सम्मान था । अपने जीवन के अंतिम वर्ष १७९४ में उन्होंने स्पष्ट घोषणा की, 'किसी एक भारतीय ग्रंथ का शुद्ध संस्करण तैयार कर देना उसी विषय पर लिखे गए सभी निबंधों से अधिक मूल्यवान होगा ।'
Publication Yug nirman yojana press
Publisher Yug Nirman Yojana Vistara Trust
Size normal
TOC 1. विदेशी साहित्य में भारतीय संस्कृति 2. ऋषि परंपरा के मूर्तिमान प्रतीक- महर्षि चाणक्य 3. वैदिक धर्म की रक्षार्थ जीवनदान करने वाले- आद्य शंकराचार्य 4. धर्मरक्षा के लिए प्राणों की आहुति दे देने वाले- श्री कमारिल भटट 5. हिंदू धर्म के रक्षक- महाप्रभु चैतन्य देव 6. प्रवृत्ति और निवृत्ति के समन्वयकारी- महात्मा बुद्ध 7. उत्तराधिकार में जिन्होंने राज्य नहीं धर्म माँगा- महाभिक्षु महेंद्र 8. धर्म और संस्कृति के संरक्षक- विद्यारण्य 9. भारत की यशपताका फहराने वाले- आचार्य दीपंकर 10. महान धर्मप्रचारक- कुमारजीव 11. संस्कृति, साहित्य के प्रभापुंज- आचार्य हेमचंद्र 12. जिन्होंने धर्मक्राति का सूत्र संचालन किया- लोंकाशाह 13. पिछड़ों और दलितों को अपनाने वाले- गुरु नानक 14. समर्पण के आदर्श प्रतीक- गुरु अंगद देव 15. तपोनिष्ठ महात्मा- श्रीचंद्र 16. योग्य गुरु के योग्य शिष्य- अमरदास और रामदास 17. बलिदानी संत- गुरु तेगबहादुर 18. पुष्प से कोमल, वज्र से कठोर-गुरु गोविंद सिंह 19. असहयोग के आद्य प्रवर्तक- बाबा रामसिंह 20. वैराग्य को सार्थक सिद्ध करने वाले- बंदा वैरागी



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