VESH BHUSHA SHALEEN RAKHE
Price: ₹ 10/-



Product Detail

Author Pandit Shriram Sharma Aacharya
Dimensions 183mm X121mm X 1mm
Edition 2009
Language Hindi
PageLength 32
Preface हमारा स्वास्थ्य जिस प्रकार आहार पर निर्भर है, उसी प्रकारवस्त्रों-पोशाकों का भी उस पर काफी प्रभाव पड़ता है पर लोगों नेइस समय इस दृष्टिकोण को बिल्कुल भुला रखा है । वे पोशाक का उद्देश्य लज्जा निवारण या शान-शौक मात्र समझते हैं । अब तोधीरे-धीरे यह मानव-जीवन का ऐसा अविच्छिन्न अंग बन गई है कि हमवस्त्रहीन मनुष्य की कल्पना भी नहीं कर सकते । अधिकांश लोग तोइसे इतना ज्यादा महत्व देते हैं और ऐसा अनिवार्य समझते हैं मानो मनुष्य वस्त्रों सहित ही पैदा हुआ है और उनके बिना उसका अस्तित्वही नहीं रह सकता । पर सच तो यह है कि मनुष्य नंगा ही पैदा हुआ है और हजारों वर्ष तक यह उसी दशा में प्रकृति माता की गोद में निवास कर चुकाहै । उस समय उसका चमड़ा भी कुछ कड़ा था । बहुत अधिक ठण्डे स्थानों के निवासी चाहे शीत के प्रकोप से बचने के लिए भालू आदि जैसे किसी पशु के चर्म का उपयोग भले ही कर लेते हों, अन्यथा उस युगमें सभी मनुष्य दिगम्बर अवस्था में ही जीवन यापन करते थे । फिर जैसे-जैसे रहन-सहन के परिवर्तन से शारीरिक अवस्था में अन्तर पड़ता गया और लिंग-भेद (सैक्स) सम्बन्धी मनोवृत्तियाँ वृद्धि पाती गयीं, मनुष्य लँगोटी, कटि-वस्त्र आदि पहनने लग गये । जब जीवन-निर्वाह के साधन बढ़ गये और अनेक लोग अपेक्षाकृत आलस्य का जीवन व्यतीत करने लगे तो ठण्डे देशों में उनको देह कीरक्षा के लिए किसी प्रकार के वस्त्र पहिनने की आवश्यकता जान पड़नेलगी । धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति बढ़ती गई और आज पोशाक ने सजावट और शौक का ही नहीं, मान-मर्यादा का रूप भी ग्रहण कर लिया है । वस्त्रों से मनुष्य के छोटे बड़े गरीब-अमीर होने का पता लगता है ।
Publication Yug Nirman Yogana, Mathura
Publisher Yug Nirman Yogana, Mathura
Size normal
TOC 1. वेशभूषा शालीन ही रखिए 2. योरोप का नग्न सम्प्रदाय 3. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुयायियों की सम्मति 4. कृत्रिम वस्त्रों के दोष 5. पश्चिमी फैशन की नकल 6. भारतीय परिधान की महत्ता 7. अधिक कपड़े एक भार की तरह हैं 8. वस्त्र कम से कम तथा ढील पहनें 9. गहने पहिनने का जंगली रिवाज 10. जूतों और मोजों की अधिकता 11. छोटे बच्चों के वस्त्र 12. कृत्रिम जीवन को त्याग दीजिए 13. प्रभावशाली व्यक्तित्व यों बनता है 14. जीवन में सादगी की आवश्यकता और उपयोगिता 15. अन्दर और बाहर की पवित्रता



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