Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Edition |
2015 |
Language |
Hindi |
PageLength |
192 |
Preface |
बाइबिल कहती है, "मनुष्य ईश्वर की महानतम कृति है ।" किंतु इसके विपरीत हम देखते हैं कि सामान्य से असामान्य बनना तो दूर, व्यक्ति साधारण स्तर का भी नहीं रह पाता है । इसका मूल करण है अपनी सामर्थ्य का बोध न होना । हनुमान को यदि अपनी सामर्थ्य का बोध रहा होता तो जाम्बवंत के उपदेश की उन्हें आवश्यकता न पड़ती । राम का आदेश पाते ही वह चल पड़ते । जैसे ही सागर किनारे साधारण से वानर हनुमान को अपनी आत्म-गरिमा का बोध हुआ, वह एक ही छलांग में असंभव पुरुषार्थ करने में सफल हो गए । अंगारों पर रखी राख अग्नि की तीव्रता को छुपाए रहती है । जैसे ही उसे हटाया जाता है, वह अपने मूल रूप में देदीप्यमान्, तापयुक्त हो उठती है । सूर्य पर बादल छाए हों तो कुछ देर के लिए वातावरण में ठंडक छा जाती है । बादलों के छँटते ही सूर्य का प्रकाश व गर्मी उस क्षेत्र के हर भाग तक पहुँचने लगती है । अपना आपा भी ऐसा ही प्रकाशवान्, जाज्वल्यमान् है । मात्र कषाय-कल्मषों ने, विस्मृति की माया ने, जन्म-जन्मांतरों के संचित कुसंस्कारों ने उसकी इस आभा को ढँक रखा है । यदि इस मायाजाल का आवरण हटाया जा सके तो असामान्य स्थिति में पहुँच सकना संभव है । |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Size |
normal |
TOC |
Part -1
1. मनुष्य से महान और कुछ नहीं
2. उपनी महानता में विश्वास रखें
3. जीवन जीने की कला सीखें
4. मनुष्य, मनुष्य बनकर जीए
5. पशुओं जैसा जीवन त्यागिए
6. देव, दानव या मानव कुछ भी बना जा सकता है ।
7. जीवन महान ऐसे बनेगा
8. आत्म-निरिक्षण
Part -2
1. अंत: करण का विकास
2. सारा जीवन ही साधना चले
3. अहंकार में घाटा ही घाटा
4. आलस्य प्रमाद को जीतें,हर क्षेत्र में सफल बनें
5. सादा जीवन उच्च विचार
6. सफल और सन्तुष्ट जीवन
7. द्वेष दुर्भाव से कोई लाभ नहीं
8. हंसिये और जीवन को मधुमय बनाइये
Part -3
1. शक्ति का भंडार हमारा मन
2. मनुष्य से महान और कुछ नहीं
3. समय संयम तथा अर्थ संयम
4. इन्द्रिय संयम और विचार संयम
5. पारिवारिकता और सामाजिकता
6. शालीनता,शिष्टाचार एवं प्रामाणिकता
7. परमार्थ परायणता
8. बात केवल रुख बदलने भर की है
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