Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Edition |
2010 |
Language |
Hindi |
PageLength |
160 |
Preface |
आज युग परिवर्तन की चर्चा प्रायः सर्वत्र सुनने में आती है। संसार की राजनैतिक और आर्थिक स्थिति में बहुत अधिक अंतर पड़ जाने से उसका प्रभाव सामाजिक और धार्मिक परम्पराओं पर भी दिखाई दे रहा है। पर ये दोनों ही क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमे मनुष्य जल्दी से बदलाव करने को तैयार नहीं होता। खासकर हमारे देश में तो सामान्य सामाजिक प्रथाओं को भी धर्म का अंग मान लिया जाता है, जिसका परिणाम यह होता है की प्रत्यक्ष में हानिकारक परम्पराओं को त्यागने या बदलने में लोग आनाकानी करने लगते हैं। वे यह नहीं समझते कि सामाजिक प्रथाएं मुख्यतः देश काल पर आधारित होती हैं। उनके लिए हठ करना कि वे पूर्व समय से चली आयी हैं और आगे भी ज्यों की त्यों चलती रहनी चाहिए, नासमझी का परिचय देना है।
इस पुस्तक में बतलाया गया है कि आज सामायिक परिस्थितियों के कारण युग परिवर्तन की जो विचारधारा जोर पकड़ रही है, उसको देखते हुए हमको अपनी अपनी सामाजिक प्रथाओं की अच्छी तरह जाँच करके उनमें समयानुकूल परिवर्तन करने चाहिए। |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
normal |
TOC |
1. युग परिवर्तन और उसकी संभावनाएं
2. इस विषम वेला में हमारा महान उत्तरदायित्व
3. परिवर्तन का केंद्र बिंदु सद्ज्ञान
4. असुरता से देवत्व की ओर
5. यह सत्यानाशी सामजिक कुरुतियां
6. सामजिक कुरीतियों का उन्मूलन
7. हमारा समाज असभ्य व अविवेकी न हो
8. सभ्य समाज का स्वरुप और आधार
9. समाज को शक्तिशली बनाएं
10. लोकमानस की शुद्धि कौन करेगा
11. समाज सुधार के लिए प्रबुद्ध वर्ग आगे बढे
12. सबकी उन्नति में अपनी उन्नति
13. देश के लिए समाज के लिए
14. मानव जाति की समस्याएं इस तरह सुलझेगी
15. आत्म सुधार विश्व कल्याण का सबसे सरल मार्ग
16. पहले हम मनुष्य बने फिर कुछ और
17. सेवा हमारी जीवन नीति बने
18. चरित्र ही संसार की सर्वोत्तम उपलब्धि है
19. व्यक्ति के मूल्यांकन का मापदंड बदले
20. धन को सम्मानित न किया जाय
21. नागरिकता और नैतिकता की आधारशिला
22. सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन न हो
23. व्यवहार कुशलता की आध्यात्मिक पृष्ठभूमियां
24. विरोधियों की उपेक्षा कीजिए
25. अनुशासन का उल्लंघन न करें
26. मंगल सोचिये मंगल करिये |