Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Dimensions |
12 X 18 cm |
Language |
Hindi |
PageLength |
168 |
Preface |
आज धरती का तापमान बढ़ता चला जा रहा है ।। पर्यावरण चक्र गड़बड़ा जाने- ऋतु विपर्यय के कारण प्रकृति- प्रकोप चारों ओर देखे जा रहे हैं ।। चाहे वे विकसित देश हों या विकासशील, सभी ओर यह कहर बरसता देखा जा सकता है ।। मनुष्य ने अपनी नासमझी से स्वयं ही इन आपत्तियों को आमंत्रित किया है ।। उसकी जीवनशैली विकृत हो चुकी है ।। साधनों को पाने की होड़ में मनुष्य ने अपनी तृष्णा को इतना बढ़ा लिया है कि कहीं अंत ही नजर नहीं आता ।। संसाधनों का दोहन आज चरम सीमा पर है ।। प्रतिदिन पूरे विश्व में कुल मिलाकर ७०,००० एकड़ के वृक्षों का कवच नष्ट कर दिया जाता है ।। यह सब हमारी सुख- सुविधाएँ बढ़ाने के लिये एक प्रकार से प्रकृति से यह खिलवाड़ मानवमात्र के महामरण की तैयारी है ।।
सभी को बैठकर एकजुट हो चिंतन करना होगा कि इस वर्तमान की स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है? क्यों प्रकृति असंतुलित हो रही है? मानवकृत विभीषिकाएँ क्यों बढ़ती जा रही हैं? मनुष्य को अपनी गरिमा के अनुरूप अपना जीवन जीना सीखना ही होगा ।। पाश्चात्य सभ्यता का खोखलापन अब जग जाहिर होता जा रहा है ।। संस्कृति का इसने जमकर विनाश किया है ।। विज्ञान के नवीनतम आविष्कारों से लाभ तो कम उठाये गये, हानि अधिक दिखाई दे रही है ।। परमाणु बमों की विभीषिका, जर्मवार, रासायनिक युद्ध न केवल मानव मात्र के लिए, अपितु समूचे पर्यावरण के लिए एक खतरा बने हुए हैं ।। बहु प्रजनन भी एक टाइम बम की तरह विस्फोटक होता जा रहा है ।।
समझदारी इसी में है कि समय रहते चेता जाये ।। हम अपने आस- पास को भी देखें एवं पर्यावरण को प्रदूषित होने से रोकें ।। समष्टिगत स्तर पर आंदोलन जन्में एवं जनचेतना जागे, ताकि महाविनाश से पूर्व हम सँभल जाएँ ।। |
Publication |
Yug Nirman Yojna Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojna Trust |
Size |
normal |
TOC |
१. पर्यावरण, प्रकृति और प्रदूषण
• प्रकृति और पर्यावरण चक्र
• प्रकृति संतुलन बिगाड़ने का प्रतिफल
• पर्यावरण चक्र का खतरनाक स्वरुप
२. पर्यावरण प्रदूषण में एक प्राथमिक कारण: नासमझी
•गंदगी-एक सामाजिक अपराध
•बढ़ता कचरा-बढ़ते संकट
•इस कचरे को समेटेगा कौन?
•डिस्पोजेबिल कल्वर- नासमझी की प्रतीक
•एक और नासमझी-नशा
•चिंतन और पर्यावरण
•बीसवीं सदी के समाज की एक विडंबना भरी कहानी
३. प्रकृति से खिलवाड़
•महामरण की तैयारी
•प्रकृति से छेड़छाड़- अब बंद की जाए
•क्यों हो रही है प्रकृति असुंलित
•पर्यावरण से छेड़छाड़- खंड प्रलय को निमंत्रण
४. वैज्ञानिक प्रगति बनाम प्राकृतिक असंतुलन
• विज्ञान ने सुविधा ही नहीं, संकट भी दिए
• प्रगति के नाम पर अवगति
• मानवकृत विभीषिकाओं के मंडराते बादल
५. अप्राकृतिक जीवन
• फैशन का प्रदुषण भोजन को विषाक्त बना रहा है
• खाद्य पदार्थों में मिलावट की समस्या
• खोखली पाश्चात्य सभ्यता ही प्रदूषित कर रही है संस्कृति को
६. युद्ध और पर्यावरण
• परमाणु शक्ति- आत्मरक्षा या विनाश
• पर्यावरण के लिए नया खतरा- विषाणु बम
• कितना खतरनाक है- ध्वंस का प्रयोग
• क्या मानवीय प्रतिभा ध्वंस में ही लगनी चाहिए
७. जनसंख्या और पर्यावरण
८. संस्कृति, विचार और पर्यावरण
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