MANSAHAR KITNA UPYOGI SHARIRIK
Price: ₹ 8/-



Product Detail

Author Pandit Shriram Sharma Aacharya
Descriptoin Include following books in this set<br> * <a href="http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=93">मांसाहार कितना उपयोगी, मनोशारीरिक एवं वैज्ञानिक विश्लेषण</a><br> * <a href="http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=134">श्वास-प्रश्वास-विज्ञान </a><br> * <a href="http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=140">रोग - औषधि आहार- विहार एवं उपवास</a><br> * <a href="http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=131">दीर्घ जीवन की प्राप्ति </a><br> * <a href="http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=89">निरोगी जीवन का राजमार्ग </a><br> * <a href="http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=139">स्वस्थ रहने के सरल उपाय</a><br> * <a href="http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=138">खाते समय इन बातों का ध्यान रखें </a><br> * <a href="http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=132">स्वस्थ और सुंदर बनने की विद्या </a>
Dimensions 182mmX121mmX2mm
Edition 2014
Language Hindi
PageLength 32
Preface मनुष्यता का लक्षण धर्म है और धर्म का मूल दया में निहित है । जिस मनुष्य के हृदय में दया नहीं, वह मनुष्यता के पूर्ण लक्षणोंसे युक्त नहीं कहा जा सकता । इस दया को मनुष्य की वह करुणा भावना ही माना जाएगा जो संसार के प्रत्येक प्राणी के लिए बराबर हो । उन मनुष्यों को कदापि दयावान नहीं कहा जा सकता जोअपनों पर कष्ट अथवा आपत्ति आई देखकर तो दुःखित हो उठतेहैं किंतु दूसरों के कष्टों के प्रति जिनमें कोई सहानुभूति अथवा संवेदना नहीं होती । और वे मनुष्य तो कूर अथवा बर्बर की श्रेणी मेंही रखे जाएँगे जो अपने तुच्छ स्वार्थ के कारण दूसरों को असह्यपीड़ा देते हैं । करुणा, दया, क्षमा, संवेदना, सहानुभूति तथा सौहार्द आदि गुणएक ही दया के ही अनेक रूप अथवा उसकी ही शाखा-प्रशाखाएँ हैं । जब तक जिसमें इन गुणों का अभाव है, मनुष्य योनि में उत्पन्न होने पर भी उसे मनुष्य नहीं कहा जा सकता । इस प्रकार मनुष्यता की परिभाषा करने पर मांसभोजियो परक्रूरता का आरोप आता है । क्रूरता मनुष्य का नहीं, पाशविकता का लक्षण है । फिर भला इस प्रकार की पाशविक प्रवृत्ति रखने वाला मनुष्य अपने को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी किस मुँह से कहता है!
Publication Yug Nirman Yogana, Mathura
Publisher Yug Nirman Yogana, Mathura
Size normal
TOC 1. जैसा अन्न वैसा मन 2. मानवीय विशेषता का परित्याग न किया जाय 3. हम निर्दयी न बनें 4. निरीह प्राणीयों पर अत्याचार 5. बहाने न ढूँढे़ 6. असुरता का पथ न अपनाएँ 7. स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव 8. आंतरिक दुर्बलता सुनिश्चित 9. ऐसा स्वास्थ्य भी किस काम का 10. अंडे़ भी त्याज्य व हेय



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