Author |
Brahmvarchas |
Description |
त्रिफला एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक रासायनिक फ़ार्मुला है जिसमें अमलकी (आंवला (Emblica officinalis)), बिभीतक (बहेडा) (Terminalia bellirica) और हरितकी (हरड़ Terminalia chebula) को बीज निकाल कर समान मात्रा में लिया जाता है। त्रिफला शब्द का शाब्दिक अर्थ है "तीन फल"।
संयमित आहार-विहार के साथ त्रिफला का सेवन करने वाले व्यक्तियों को ह्रदयरोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, नेत्ररोग, पेट के विकार, मोटापा आदि होने की संभावना नहीं होती। यह कोई 20 प्रकार के प्रमेह, विविध कुष्ठरोग, विषमज्वर व सूजन को नष्ट करता है। अस्थि, केश, दाँत व पाचन- संसथान को बलवान बनाता है। इसका नियमित सेवन शरीर को निरामय, सक्षम व फुर्तीला बनाता है।
Set Contain Four Items:-
1 जडी-बूटियो द्वारा स्वास्थ्य संरक्षण - Book
2 हरड़ चूर्ण -Terminalia Chebula -100gm- -Churan
3 आमलकी चूर्ण - Emblica Officinalis-100 Gm -Churan
4 बहेड़ा चूर्ण -Terminalia Bellirica- 100 Gm -Churan |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Edition |
2011 |
Language |
Hindi |
PageLength |
236 |
Preface |
जड़ी- बूटी चिकित्सा
युग की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता
आज सभ्यता की घुड़दौड़- आपाधापी ने मनुष्य को स्वास्थ्य के विषय में इस सीमा तक परावलंबी बना दिया है कि वह प्राकृतिक जीवनक्रम ही भुला बैठा है ।। फलत: आए दिन रोग- शोकों के विग्रह खड़े होते रहते हैं व छोटी- छोटी व्याधियों के नाम पर अनाप- शनाप धन नष्ट होता रहता है ।। मनुष्य अंदर से खोखला होता चला जा रहा है ।। जीवनीशक्ति का चारों ओर अभाव नजर आता है ।। मौसम में आए दिन होते रहने वाले परिवर्तन उसे व्याधिग्रस्त कर देते हैं, जबकि यही मनुष्य २५ वर्ष पूर्व तक इन्हीं का सामना भलीभाति कर लेता था ।। आज शताधिकों की संख्या उंगलियों पर गिनने योग्य है ।। जबकि हमारे पूर्वज कई वर्षो तक जीवित रहते थे, उनके पराक्रमों की गाथाएँ सुनकर हम आश्चर्यचकित रह जाते हैं ।।
आहार- विहार में समाविष्ट कृत्रिमता ने जिस प्रकार जिस सीमा तक शरीर के अंग- अवयवों को अपंग- असमर्थ बनाया, उसी प्रकार चिकित्सा क्रम भी बनते चले गए ।। पूर्वकाल में आयुर्वेद ही स्वास्थ्य संरक्षण का एकमात्र माध्यम था ।। धीरे- धीरे वृहत्तर भारत में समाविष्ट अन्य संस्कृतियों के साथ यहाँ अन्य पैथियां भी आई और आज चिकित्सा के नाम पर ढेरों पद्धतियाँ प्रयुक्त होती हैं ।। |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
normal |
TOC |
• जड़ीबूटी चिकित्सा- युग की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता
• वनौषधियों की उपादेयता वतर्मान परिप्रेक्ष्य में
• वनौषधि चिकित्सा के वैज्ञानिक आधार
• एकौषधि ही क्यों?
• सूक्ष्मीकरण का विज्ञान
• प्रथम खण्ड की महत्त्वपूर्ण औषधियाँ
• मूलहठी (ग्लिसराइजा ग्लेब्रा)
• आँवला (एम्बलीका आफीसिनेलिस)
• हरड़ (टमिर्नेलिया चेब्यूला)
• बिल्व (इगल मामेर्लोज)
• अडूसा (एढेटोडा वेसाइका)
• भारंगी (क्लरोडेण्ड्रान सेरेटम)
• अर्जुन (टमिर्नेलिया अजुर्न)
• पुननर्वा (बोअरहविया डिफ्यूजा)
• ब्राह्मी (बकोपा मोनिएरा)
• शंखपुष्पी (कन्वाल्व्यूलस प्लूरीकॉलिस)
• निगुर्ण्डी (वाइटेक्स निगुर्ण्डी)
• सुण्ठी (जिंजिबर आफिसिनेल)
• नीम (एजाडिरेक्टा इण्डिक)
• सारिवा (हेमिडेसमस इण्डिकस)
• चिरायता (सुआश्शिर्या चिरायता)
• गिलोय (टीनोस्पोरा काडीर्फोलिया)
• अशोक (साराका इण्डिका)
• गोक्षुर (ट्राकईबुलस टेरेस्टि्रस)
• शतावर (एस्पेरेगस रेसिमोसस)
• अश्वगन्धा (विदेनिया सॉम्नीफेरा)
• बीस औषधियों पर एक विहंगम दृष्टि
• समस्त रोगों की एक औषधि-तुलसी (ऑसीमम सैंक्टम)
• परिशिष्ट-१(स्थानिय उपचार में प्रयुक्त होने वाली औषधियां)
• परिशिष्ट-2 विभिन्न व्याधियों में अनुपान, पथ्य एवं अपथ्य
|