Author |
Pt. shriram sharma |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Edition |
2015 |
Language |
Hindi |
PageLength |
64 |
Preface |
प्राकृतिक जीवन हर दृष्टि से निरापद
मानवी काया प्रकृति की सर्वोत्तम रचना है ।। इतना समर्थ और अद्भुत स्वसंचालित यंत्र संसार में दूसरा कोई नहीं हो सकता ।। अनावश्यक छेड़- छाड़ न की जाए स्वास्थ्य के लिए आवश्यक आहार विहार के नियमों का ठीक प्रकार पालन भर कर लिया जाए तो इतने मात्र से शरीर को जीवन पर्यत स्वस्थ और निरोग रखा जा सकता है ।। मौसम में होने वाले हेर- फेर से कभी- कभी शरीर- संस्थान में भी व्यतिक्रम दिखाई पड़ता है ।। परिवर्तित परिस्थितियों से समायोजन स्थापित करने के लिए शरीर सचेष्ट होता है, सामाजिक शारीरिक असंतुलन इसलिए परिलक्षित होते हैं ।। शरीर- संस्थान में प्रविष्ट हुए विजातीय तत्त्वों के निष्कासन एवं परिशोधन के लिए भीतर की जीवनी शक्ति निरंतर प्रयत्नशील रहती है ।। इस शोधन- प्रक्रिया में कभी- कभी विभिन्न प्रकार के रोग भी उभरते हैं ।। ऐसे समय में हड- बडा कर तेज दवाओं की शरण में जाने की अपेक्षा थोड़ा धैर्य रखा जा सके, खान- पान में संयम बरता जा सके और प्रकृति को अपना काम स्वतंत्रता से करने दिया जाए तो कुछ ही समय में रुग्णता से छुटकारा मिल सकता है ।। आपत्तिकालीन परिस्थितियों की बात और है ।। जरूरी हो तो ही हल्की- फुल्की दवाएँ सामयिक राहत के लिए ली जा सकती हैं पर स्थायी उपचार की बात सोचनी हो तथा स्वस्थ एवं निरोग जीवन अभीष्ट हो तो प्रकृति के नियमों का ही परिपालन करना होगा ।।
प्रकृति संसार का सर्वोत्तम चिकित्सक है ।। विश्व के मूर्धन्य शरीरशास्त्रियो ने इस तथ्य को स्वीकार किया है ।। आधुनिक सभ्यता एवं कृत्रिम जीवनक्रम से जो प्राणी जितने दूर है, वे उतने ही स्वस्थ और निरोग हैं ।। |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
normal |
TOC |
• प्राकृतिक जीवन हर दृष्टि से निरापद
• आधुनिक कृत्रिम रहन-सहन अर्थात् रोगों को आमंत्रण
• जीवनी शक्ति बढ़ाए, वही चिकित्सा उचित है
• स्वास्थ्य की कुँजी अपनी मुट्ठी में
• आहार शुद्धि भी उतनी अनिवार्य
• आरोग्य एवं चिर यौवन का रहस्योद्घाटन
• प्रफुल्लता सुगठित स्वास्थ्य हेतु अनिवार्य आवश्यकता
• उपवास एक समर्थ उपचार पद्धति
• दीर्घायुष्य एक बहुमूल्य वरदान
• स्वच्छता को भी महत्त्व मिले
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