Author |
Pt shriram sharma acharya |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Edition |
2010 |
Language |
Hindi |
PageLength |
24 |
Preface |
आदर्श विवाहों के लिए यह आवश्यक है कि उनका निश्चय एवं निर्धारण आदर्शवादी सिद्धाँतों के आधार पर किया जाय ।। केवल रीति- रस्म तो सुधरे हुये ढंग से कर ली जायँ और उस सम्बन्ध को निश्चय करने में गलत दृष्टिकोण को मान्यता दी जाये ऐसा नहीं होना चाहिए ।। रस्म का उतना महत्त्व नहीं जितना उसके मूल आधार का इसलिए उसके सम्बन्ध में भी हमें अपनी मान्यतायें परिमार्जित कर लेनी चाहिए और उसी आधार पर जहाँ उपयुक्तता हो वहाँ सम्बन्ध निश्चित करना चाहिए ।।
शारीरिक परिपक्वता
आदर्श विवाहों के लिए यह आवश्यक है कि वह कन्या गृहस्थ का उत्तरदायित्व संभालने योग्य हो गई हो ।। कन्या की आयु १८ वर्ष और वर की आयु २१ वर्ष से कम तो किसी प्रकार नहीं होना चाहिए यह तो न्यूनतम आयु है ।। वस्तुत: इससे अधिक आयु होने पर ही बालकों का शरीर गृहस्थ का उत्तरदायित्व सँभालने योग्य होता है ।। शरीर शास्त्र के अनुसार इस प्रकार की योग्यता लड़की को २१ वर्ष की आयु में और लड़के को २५ वर्ष की आयु में प्राप्त होती है ।। वयस्क बच्चे ही विवाह योग्य होते हैं ।। छोटी आयु के बालक विवाह बन्धन में बँधकर अपना शारीरिक और मानसिक नाश ही करते हैं ।। उनकी सन्तानें दुर्बल होती है और स्वयं भी कच्ची अवधि में शक्तियों का समुचित संचय न होने से पूर्व उनको खर्च करने लगने से खोखला बन जाते हैं ।। उनके शरीर धीरे- धीरे अनेक रोगों से ग्रसित रहने लगते है और अल्प आयु में ही जीवन लीला समाप्त करने को विवश होते हैं ।। |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
normal |
TOC |
1 गृहस्थ जीवन एक तपोवन :- Book
2 गृहस्थ में प्रवेश के पूर्व जिम्मेदारी समझें :- Book
3 गृहलक्ष्मी की प्रतिष्ठा :- Book
4 गृहस्थ एक योग साधना :- Book
5 विवाह के आदर्श और सिद्धान्त :- Book
6 गृहस्थ : एक तपोवन - 61 :- Book
|
TOC |
• विवाहोत्सव के लिए बुद्धि बेच क्यो दी जाय
• विवाहो का वातावरण धर्मनुष्ठान जैसा रहे
• क्या विधवा विवाह शास्त्र विरुद्ध है ?
• बाल विवाह का अभिशाप
• उच्चशिक्षित कन्या की विवाह समस्या एवं उसका हल
• सार्वजनिक सत्कार्यो के लिए दान
• अपव्यय का कुचक्र तोड डाले
• आदर्श विवाहो का प्रचलन कैसे हो ?
• नये रक्त को नवयुग की चुनौती
|