GAYATRI SHAKTI PITH GURUDEV KI DRISTI HAMARE
Price: ₹ 30/-



Product Detail

Author Brahmavarchasva
Dimensions 12X18 cm
Language Hindi
PageLength 96
Preface युगऋषि ने नवसृजन के लिए जो सूक्ष्म स्थूल तानाबाना बुना, उसके अन्तर्गत गायत्री शक्तिपीठों- प्रज्ञापीठों की स्थापना का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है ।। मनुष्य मात्र, प्राणिमात्र के लिए उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने जैसे महान प्रयोजन की पूर्ति के लिए गायत्री महाविद्या और यज्ञ विज्ञान के परिष्कृत स्वरूप को जन जीवन में प्रतिष्ठित करना जरूरी समझा गया ।। उसी बीच वसंत पर्व ११७१ पर २४ गायत्री शक्तिपीठों की स्थापना का दिव्य संकल्प उतरा ।। दैवी प्रेरणा से अनुप्राणित संकल्प ने जाग्रत आत्माओं को तत्काल प्रभावित किया तथा तमाम विसंगतियों और साधनों के अभाव के बीच भी पीठों के निर्माण का क्रम तीव्र गति से आगे बढ़ा ।। डेढ़ वर्ष के अन्दर उनकी संख्या सैकड़ों तक जा पहुँची ।। कुछ ही वर्षों में वह संख्या २४०० का ऑकड़ा पार कर गयी ।। गायत्री शक्तिपीठों- प्रज्ञापीठों की इस विस्तार प्रक्रिया को विचारशील प्रत्यक्ष दर्शियों ने अदभुत- अभूतपूर्व माना ।। गायत्री शक्तिपीठों के संकल्प का अवतरण सन् १९७९ में हुआ ।। उसको २५ वर्ष पूरे हुए ।। २५ वर्ष में अभियान के अन्दर जवानी फूट पड़नी चाहिए ।। जवानी का अर्थ है नव सृजन की क्षमता और उमंग का उभार ।। युगऋषि ने गायत्री शक्तिपीठों को जिस उद्देश्य के लिए स्थापित करने की बात कही थी, उन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रौढ़, जोशीला अभियान प्रारंभ किया जाना जरूरी है ।। गायत्री जयंती २००५ से गुरु पूर्णिमा २००७ तक के २५ माह पीठ संकल्प अवतरण की रजत जयंती मनाने के लिए निर्धारित किए गये हैं ।। इस बीच युगऋषि के इस अभियान को इतना प्रामाणिक एवं प्रखर स्वरूप दे देना है, जिसके नाते यह तंत्र इष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु लम्बे समय तक सही दिशा में गतिशील रह सके ।।
Publication Yug Nirman Yogana, Mathura
Publisher Yug Nirman Yogana, Mathura
Size normal
TOC 1. युगऋषि की संकल्पना- एक झलक 2. युगशक्ति-निष्कलंक प्रज्ञावतार 3. पीठों का स्वरूप और उनकी दिशाधारा 4. धर्म-तन्त्र की विवेक संगत प्रतिष्ठा 5. जीवन्त जन सम्पर्क हेतु परिव्राजक तन्त्र 6. संचालकों से अपेक्षाएँ 7. सृजन सैनिकों की छावनियाँ सिद्ध हो 8. सृजन का उत्साह और कौशल उभरे 9. युग शक्ति का प्रवाह प्रखर बनायें 10. समयबद्ध लक्ष्य बनाकर चलें 11. जरूरत है ब्राह्मणत्व के विकास की 12. शक्तिपीठ-प्राचीन एवं नवीन



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