Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Language |
Hindi |
PageLength |
24 |
Preface |
विवाहों का वातावरण धर्मानुष्ठान जैसा हो
विवाह मानव- जीवन का एक सर्वोत्कष्ट यज्ञ है ।। दो आत्मायें अपना स्वतन्त्र अस्तित्व खो कर परस्पर एक दूसरे में विलीन होती हैं और उस संगम से एक सम्मिलित शक्ति का अभिनव अविर्भाव होता है ।। गंगा और यमुना के मिलन स्थल को संगम कहते है ।। जिस स्थान पर यह पुण्य प्रयोजन पूर्ण हुआ है,वहाँ तीर्थराज प्रयाग अस्तित्व में आया ।। उस पावन भूमि का दर्शन करने मात्र से भक्त अपने को धन्य मानते है ।। दो नदियों का मिलन निश्चित ही महत्वपूर्ण है ।। मिलन की महिमा असामान्य है ।। दो के मिलने से तीसरी एक नई ही प्रबल शक्ति का अविर्भाव होता ।। निर्जीव पड़ी हुई दो ऋण एवं धन विद्युत धाराएँ जब परस्पर जुड़ती है तो प्रचण्ड विद्युत प्रवाह तत्काल अविर्भूत हो उठता है ।। रासायनिक पदार्थो के मिलने से कितने नये तत्व विनिर्मित होते है उसे कौन नहीं जानता ।। दिन और रात्रि के मिलन की संध्या कितनी पवित्र है इसके महात्म्य से हर धर्म प्रेमी भली- भाँति परिचित है ।।
चतुर माली जानता है कि दो पीधों को कलम आपस में जोड़ देने से जो कलम- पौदा बनता है उसके फल- फूल कितने परिष्कृत होते है ।।
यह तो जड़ वस्तुओं के मिलने की बात रही चेतन आत्माओं का मिलन और भी सामर्थ्यवान होता है ।। अर्जुन और कृष्ण ने मिलकर महाभारत जीता ।। राम और लक्ष्मण की जोड़ी असुरता को परास्त करने में समर्थ हुई ।। यह तो मिलन मात्र हुआ ।। विलय इससे भी ऊँची वस्तु है ।। एक आत्मा का दूसरी में लय हो जाना अपने स्वतन्त्र अस्तित्व को समाप्त कर दूसरे के व्यक्तित्व में घुल जाना मानव- प्राणी के द्वारा हो सकने वाले उत्कृष्ट आध्यात्मिक पुरुषार्थ का प्रमाण है ।। |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
normal |
TOC |
1. विवाह एक उत्कृष्ट यज्ञ
2. पवित्रता अक्षुण्ण रखी जाय
3. गरिमा गिराने न दी जाय
4. उल्टी दिशा और उल्टे कदम
5. गंदे गीतों का कुप्रभाव
6. महिलाएं आसानी से समझ सकती हैं
7. मंगल गीतों का सृजन
8. मखौलबाजी बंद की जाय
9. ओछे मजाक उच्छृखंल मखौल
10. अश्लीलता की असुरता
11. संयम और सदाचार पर पलीता
12. पिछड़े पन की निशानी
13. नशेवाजी का दौर दौरा
14. अपवित्र मांसाहार
15. धार्मिक वातावरण गंदा न किया जाय
16. महत्ता समझें और गिरने न दें
17. सामयिक परिवर्तन की आवश्यकता
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