GURUVER KI DHAROHAR-2
Price: ₹ 33/-



Product Detail

Author Dr. Pranav Pandya
Dimensions 12X18 cm
Language Hindi
PageLength 176
Preface आश्चर्य होता है जब हम परम पूज्य गुरुदेव की लेखमी से निस्तृत संस्कृतनिष्ठ शब्दों को उनकी अमृतवाणी के रूप में सुनते हैं । बहुत विरले होते हैं जो बोलते समय अपने अंदर का लेखक हावी न होने देकर बोधगम्य जन सामान्य की भाषा बोल पाते हों । परम पूज्य गुरुदेव एक ऐसी ही विभूति थे जिनका भाषा व वाणी पर लेखनी व वकृता पर समाज अधिकार था । लाखों व्यक्तियों के मन-मस्तिष्क को बदल देने वाली उनकी लेखनी २७०० पुस्तकों के रूप में अभिव्यक्ति हुई जो अभी तक प्रकाशित् हैं । अभी भी ५०० से अधिक अप्रकाशित ग्रंथ हैं जो समय-समय पर परिजनों के सम्मुख आते रहेंगे । किंतु उमकी वाणी इतनी मुखर व पूरे समय तक श्रोताओं को बाँधे रखने वाली २७०० कैसेट्स में भी बाँधी नहीं जा सकती, इतना कुछ बोला है उस युगदृष्टा ने । महापुरुषों के अमृत वचन हमारे लिए उनके साथ किये गए सत्संग की पूर्ति कर देते हैं । उनका उपदेश हमारी चित्तशुद्धि करता है एवं हमें क्षुरस्य धारा की तरह अध्यात्म के दुस्तर मार्ग पर चलने का साहस देता है । परम पूज्य गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी के जीवन की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनने जीवन भर ऐसा लिखा, जिसने लाखों- करोड़ों का मार्गदर्शन किया तथा अपने प्रवचनों में इतना कुछ कहा कि अगणित व्यक्ति जो साहित्य के माध्यम से नहीं जुड़े थे, उनकी अमृतवाणी सुनकर जुड़ गए । इतनी सरल भाषा, इतने सुन्दर जीवन से जुड़े उदाहरण, कथानक एवं कबीर, तुलसी, वाल्मीकि, व्यास की विद्वत्ता का, आद्य शंकर एवं स्वामी विवेकानन्द के कुशाग्र भावसिक्त विचारों का समन्वय और कहीं देखने को नहीं मिलता । प्रस्तुत पुस्तक गायत्री व यज्ञ को जन- जन तक पहुँचाने वाले उसी युगपुरुष की अमृतवाणी का संकलन- सम्पादन है ।
Publication Yug Nirman Vistar Trust, Mathura
Publisher Yug Nirman Vistar Trust, Mathura
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TOC 1. नवरात्र साधना का तत्वदर्शन 2. कैसे हो आध्यात्मिक कायाकल्प भाग-१ 3. कैसे हो आध्यात्मिक कायाकल्प भाग-२ 4. कैसे हो आध्यात्मिक कायाकल्प भाग-३ 5. शक्ति भंडार से स्वयं को जोड़ कर तो देखें 6. गुरुतत्व की गरिमा एवं महिमा 7. महायज्ञों का स्वरूप व उद्देश्य 8. दुर्गति और सद्गति का कारण, हम स्वयं 9. सुसंस्कारी बनाए कैसी हो वह शिक्षा ? 10. मनुज देवता बने, बने यह धरती स्वर्ग समान 11. ब्रह्मावर्चस कैसे जगाती है गायत्री ? 12. ध्यान योग का व्यावहारिक क्रिया-पक्ष 13. युग संधि की बेला व हमारे दायित्व 14. आपत्तिकाल का अध्यात्म 15. युग परिवर्तन की पूर्व वेला एवं संधिकाल



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