Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Language |
Hindi |
PageLength |
64 |
Preface |
ऋषि युग्म की यह अभिलाषा रही है कि वे अपने स्वजन- परिजनों को नव निर्माण के लिए, कुछ करने के लिए कहते- सुनते रहने का अभ्यस्त मात्र न बना दें वरन् कुछ तो करने के लिए उनमें सक्रियता पैदा करें ।। थोड़े कदम तो उन्हें चलते हुए वे अपनी आँखों देख लें ।। उन्होंने अपना सारा जीवन जिस मिशन के लिए तिल तिल जला दिया, जिसके लिए वे आजीवन प्रकाश और प्रेरणा देते रहे, उसका कुछ तो सक्रिय रूप उन्हें दिखाई दे ।। उनके प्रति आस्था और श्रद्धा व्यक्त करने वाले क्या उनके अनुरोध को भी अपना सकते हैं ? क्या उनके पद चिन्हों पर कुछ दूर चल भी सकते हैं ? ये दो यक्ष प्रश्न हैं जिसका उत्तर प्रत्येक परिजन को अपने अंतःकरण में खोजना चाहिए ।।
उन्होंने आजीवन तप और त्याग का, आत्म चिंतन, आत्म परिष्कार और आत्म विकास का सर्वोत्कृष्ट आदर्श हमारे सामने प्रस्तुत किया है ।। जीवन भर वे सच्चे साथियों के रूप में एक विशाल कर्तृत्ववान आदर्श परिवार का सृजन करते रहे हैं न कि शेखचिल्ली जैसी कल्पना का महल गढ़ते रहे हैं ।।
अब परिजनों के लिए परीक्षा की घड़ी आ उपस्थित हुई है ।। उनके स्वप्नों को कर्तृत्ववान बनकर साकार करने का यही समय है ।। अत: अंतःकरण पर छाई हुई प्रमाद और आलस्य की, मलिनता और स्वार्थपरता की, लोकेषणा और वित्तेषणा की राख को दूर कर चिनगारी को ज्वाला बना देने के लिए ही " ऋषि युग्म का यह उद्बोधन" हम अपने आत्मीयों के हाथ तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं ।। |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
normal |
TOC |
1. गुण-कर्म-स्वभाव मे सामंजस्य हो
2. आस्तिकतापूर्ण अध्यात्मवाद से ही सुख-शांति संभव
3. प्रेम ही सर्वस्व है
4. पूज्य गुरुदेव के महान कर्तव्यों को पूरा करें
5. यज्ञीय जीवन अपनाया जाय
6. विचार क्रांति के लिए भागीरथ प्रयत्न अपेक्षित है
7. हम नहीं, हमारा मिशन ही सर्वोपरि है
8. विचार क्रांति नव निर्माण का अनिवार्य कदम है
9. पुराने परिजन अब तो जागें
10. स्वतंत्र विवेक के आधार पर आत्म निर्माण करें
11. आत्मा की उत्कृष्टता ही सबसे बड़ी सिद्धि है
12. उत्कृष्टता और आदर्शवादिता को अपनाएँ
13. अपना स्तर ऊँचा उठाएँ
14. ज्ञान यज्ञ नवयुग का मंगलाचरण है
15. सुअवसर को हाथ से न जाने दें
16. ज्ञान यज्ञ की चिनगारियाँ विश्व को प्रज्वलित करेंगी
17. ज्ञान यज्ञ का प्रथम चरण प्रचार और दूसरा परिवर्तन है
18. जीवन बहुमूल्य है, उसे व्यर्थ न गँवाएँ
19. लेखन-प्रवचन हमारा व्यवसाय नहीं
20. आध्यात्मिकता एवं तप की शक्ति
21. अपने तौर-तरीके बदलें
22. युग परिवर्तन के लिए चाहिए आंतरिक प्रखरता
23. अध्यात्म विज्ञान की कसौटी पर
24. जागरुक आत्माओं का विशेष कर्तव्य
25. आत्मनिर्माण से होगा युग निर्माण
26. प्रतिभा की पुकार
27. नवयुग का अवतरण सुनिश्चित
28. आत्मश्क्ति का उद्भव
29. आत्मदेव ही महादेव
30. प्रतिकूलता देखकर संतुलन न खोएँ
31. सफल-समुन्नत जीवन का सूत्र
32. परिवर्तन विश्व का होना है
33. चूकिए मत,ऐतिहासिक भूमिका निभाइए
34. मनस्वी और तपस्वी लोकनायक आगे आएँ
35. भावना जगाएँ, गुरुदेव के सपनों को पूरा करें
36. भगवान को अपने में आत्मसात करें
37. कर्तव्य निष्ठा सफलता से अधिक श्रेयस्कर है।
38. प्रचारको की निष्ठा और चेष्टा प्रखर होनी चाहिए
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