UPASNA KE DO CHARAN JAP DHYAN
Price: 10/-



Product Detail

Author Pandit Shriram Sharma Aacharya
Descriptoin 1 Mantra Lekhan Pustika (2400 Mantra) :-Note Book 2 गायत्री की दैनिक साधन :- Book 3 उपासना के दो चरण जप और ध्यान :- Book 4 गायत्री चालीसा :- Book 5 Upavashra - Gayatri Mantra Dupatta (Cotton) :- Puja Accessories 6 जप माला :- Puja Accessories 7 देवस्थापना (7x10 Inch) :- Poster 8 Goumukhi
Descriptoin 1 विवाह यज्ञ है, इसे उद्धत उत्पात जैसा न बनाएँ :- Book 2 ईश्वरीय न्याय :- Book 3 दहेज दानव से सामाजिक लड़ाई लड़ी जाय :- Book 4 हारिए न हिम्मत :- Book 5 गृहस्थ जीवन एक तपोवन :- Book 6 उपासना के दो चरण जप और ध्यान :- Book 7 Chitra Round Sarvdharma (4*4) :- Sticker
Descriptoin 1 उपासना के दो चरण जप और ध्यान 2 गायत्री कामधेनु है 3 गायत्री साधना क्यो ? और कैसे ? 4 गायत्री की गुप्त शक्तियाँ 5 गायत्री की शक्ति और सिद्धि 6 आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना 7 गायत्री चालीसा 8 गायत्री से संकट निवारण 9 गायत्री की प्रचंड प्राण ऊर्जा
Dimensions 181mmX122mmX2mm
Edition 2014
Language Hindi
Language English
PageLength 40
Preface प्रतीक उपासना की पार्थिव पूजा के कितने ही कर्मकाण्डों का प्रचलन है । तीर्थयात्रा, देवदर्शन, स्तवन, पाठ, षोडशोपचार, परिक्रमा,अभिषेक शोभायात्रा, श्रद्धांजलि, रात्रि-जागरण, कीर्तन आदि अनेकों विधियाँ विभिन्न क्षेत्रों और वर्गों में अपने-अपने ढंग से विनिर्मित और प्रचलित हैं । इससे आगे का अगला स्तर वह है, जिसमें उपकरणों का प्रयोग न्यूनतम होता है और अधिकांश कृत्य मानसिक एवं भावनात्मक रूप से ही सम्पन्न करना पड़ता है । यों शारीरिक हलचलों, श्रम और प्रक्रियाओं का समन्वय उनमें भी रहता ही है । उच्चस्तरीय साधना क्रम में मध्यवर्ती विधान के अन्तर्गत प्रधानत यादो कृत्य आते हैं । ( १) जप ( २) ध्यान । न केवल भारतीय परम्परा में वरन् समस्त विस्व के विभिन्न साधना प्रचलनों में भी किसीन किसी रूप में इन्हीं दो का सहारा लिया गया है । प्रकार कई होसकते हैं, पर उन्हें इन दो वर्गों के ही अंग-प्रत्यंग के रूप में देखाजा सकता है ।साधना की अन्तिम स्थिति में शारीरिक या मानसिक कोई कृत्य करना शेष नहीं रहता । मात्र अनुभूति, संवेदना, भावना तथा संकल्प शक्ति के सहारे विचार रहित शून्यावस्था प्राप्त की जाती है । इसीको समाधि अथवा तुरीयावस्था कहते हैं । ब्रह्मानन्द का परमानन्द का अनुभव इसी स्थिति में होता है । इसे ईश्वर और जीव के मिलन की चरम अनुभूति कह सकते हैं । इस स्थान पर पहुँचने से ईश्वर प्राप्तिका जीवन लक्ष्य पूरा हो जाता है । यह स्तर समयानुसार आत्म-विकास का क्रम पूरा करते चलने से ही उपलब्ध होता है ।
Publication Yug Nirman Yogana, Mathura
Publisher Yug Nirman Yogana, Mathura
Size normal
TOC नवरात्रि को देवत्व के स्वर्ग से धरती पर उतरने का विशेष पर्व माना जाता है। उस अवसर पर सुसंस्कारी आत्माएँ अपने भीतर समुद्र मंथन जैसी हलचलें उभरती देखते हैं। जो उन्हें सुनियोजित कर सकें वे वैसी ही रत्न राशि उपलब्ध करते हैं जैसी कि पौराणिक काल में उपलब्ध हुई मानी जाती हैं। इन दिनों परिष्कृत अन्तराल में ऐसी उमंगें भी उठती हैं जिनका अनुसरण सम्भव हो सके तो दैवी अनुग्रह पाने का ही नहीं देवोपम बनने का अवसर भी मिलता है यों ईश्वरीय अनुग्रह सत्पात्रों पर सदा ही बरसता है, पर ऐसे कुछ विशेष अवसर मिल सके। इन अवसरों को पावन पर्व कहते हैं। नवरात्रियों का पर्व मुहूर्तों में विशेष स्थान है। उस अवसर पर देव प्रकृति की आत्माएँ किसी अदृश्य प्रेरणा से प्रेरित होकर आत्म कल्याण एवं लोक मंगल क्रिया कलापों में अनायास ही रस लेने लगती हैं।
TOC 1. उपासना के दो चरण जप और ध्यान 2. जप योग की विधि- व्यवस्था 3. ध्यान धारणा की दिव्य-शक्ति



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