SUSANSKRIT PARIWAR KI PRISHTHABHUMI
Price: ₹ 40/-



Product Detail

Author Mata Bhagwati Devi Sharma
Dimensions 12 cm x 18 cm
Edition 2011
Language Hindi
PageLength 208
Preface मानव- सभ्यता का जितना विकास वर्तमान समय में दिखलाई पड़ता है उसका अधिकांश श्रेय परिवार- प्रथा को ही दिया जा सकता है ।। जिस युग में मनुष्य बिना परिवार के एकाकी रहता था तब उसमें और अन्य पशुओं में बहुत थोड़ा ही अंतर था ।। परिवार बनाकर रहने के पश्चात उस पर स्त्री और बच्चों की सुरक्षा तथा पालन का जो उत्तरदायित्व आया, उसी से उसमें सामूहिकता तथा सहयोग की वृत्तियाँ उत्पन्न हुईं ।। इसी के द्वारा उसे स्वार्थ त्याग और समाज सेवा का पाठ पढ़ने को मिला, जिससे क्रमश: लोगों को संगठन और सहयोगपूर्वक काम करने का अभ्यास बढ़ता गया और मानव- समाज अन्य सब प्राणियों से श्रेष्ठ और सशक्त स्थिति में पहुँच सका ।। पर खेद है कि कुछ समय से हमारे देश में परिवार- संस्था में गिरावट आ रही है और लोग प्राचीन उच्च आदर्शों को भूलकर गलत मार्ग को अपना रहे हैं ।। त्याग, उदारता, स्नेह सहानुभुति की वृत्तियों में कमी आ रही है और परिवार के विभिन्न सदस्यों के बीच आपाधापी, मेल- जोल की कमी और मन: क्षेत्र में कटुता की वृद्धि हो रही है ।। यह स्थिति किसी दृष्टि से हितकर नहीं कही जा सकती ।। इस पुस्तक में पाठकों को इसी परिस्थिति का विवेचन मिलेगा और यह भी विदित होगा कि हम वर्तमान पारिवारिक दुर्दशा का निराकरण- सुधार किस प्रकार कर सकते हैं ।। इससे शिक्षा ग्रहण करके आप अपने कलह, कटुता और दुर्दशाग्रस्त परिवारों को सद्भावयुक्त और सुखी बना सकेंगे, इसमें संदेह नहीं ।।
Publication Yug nirman yojana press
Publisher Yug Nirman Yojana Vistar Trust
Size normal
TOC 1. परिवार की आवश्यकता और महत्ता 2. दिशा बिगड़ने न दी जाय 3. परिवार-निर्माण की धुरी-नारी 4. उत्कर्ष की दिशा में बढ़ चलें 5. परिवार शांति और विश्रांति के आश्रय स्थल बनें 6. परिवार में सुखसृष्टि यों संभव है 7. उच्चतर संस्कारों का सृजन करें 8. कथा माध्यम से परामर्श दें 9. परिवार-निर्माण में कथा-पुराणों का योगदान 10. संयुक्त परिवार एक आदर्श प्रणाली 11. संयुक्त परिवार- आधार और व्यवहार 12. भावनात्मक एकरूपता 13. अभिभावक एवं संतान 14. बड़ों के आदेश और उनका सम्मान 15. भाई- भाई, भाई-बहन 16. आदर्श सहेली-ननद- भाभी 17. देवरानी-जेठानी की आत्मीयता 18. बेटी और बहू में अंतर न रहे 19. आतिथ्य धर्म के आधार



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