Author |
pt. shri ram sharma acharya |
Dimensions |
121X181X3 mm |
Edition |
2014 |
Language |
Hindi |
PageLength |
32 |
Preface |
कलकत्ता बम के सेशन जज की अदालत में मानिकलता बम केस का ऐतिहासिक मुकद्मा चल रहा था । अभियुक्तों में से अधिकांश ऐसे नवयुवक थे, जिन्होंने देश को विदेशी शासन से मुक्त कराने का संकल्प लिया था और उसके लिए वे प्राण अर्पण करने को प्रस्तुत थे । ये सब युवक बड़े साहसी, उग्र और क्रांतिकारी विचारों के थे और वे अपने रक्त से हस्ताक्षर करके गुप्त-समिति के सदस्य बने थे । इस मुकदमे में उनको फाँसी और काला पानी जैसे कठोर दंडों की ही सभावना थी, तो भी न कोई भयभीत था, न अपने बचाव के लिए कोशिश कर रहा था । सब लोग ऐसे आमोद-प्रमोद के साथ जेलखाने में रहते थे जैसे किसी महोत्सव में सम्मिलित होने आये हों ।
पर इन सबकी अपेक्षा अधिक निर्भय और साथ ही अधिक गंभीर तथा निश्चित थे-श्री अरविंद घोष जो दस वर्ष से अध्यात्ममार्ग के पथिक थे । वे राजनीतिक आंदोलन में भाग लेने के साथ ही आध्यात्मिक शक्तियों को बढ़ाने के लिए कई प्रकार के योग संबंधी अभ्यास करते रहते थे, पर जब तक वे बाहर रहे, तब तक । नौकरी और उसके बाद आदोलन के कारण इस तरफ पूरा ध्यान देने का समय ही नहीं मिलता था । अब जेल में जा बैठने पर सब तरह के झंझटों से छूट गए और अपनी कोठरी में बैठकर समस्त मन-प्राण से भगवान् का ध्यान करने लगे । इसलिए वे अपनी जेल-यात्रा को आश्रम-वास कहने लगे थे । वहाँ उन्हें गहरी साधना का अवसर मिला और वे ब्रह्म-चेतना तक पहुँच गए, जो अध्यात्म-साधना का सर्वोच्च स्तर माना जाता है । कहते हैं कि जेल में प्राणायाम का अभ्यास करते समय उनका शरीर एक तरफ से हवा में ऊँचा उठ जाता था ।
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Publication |
yug nirman yojana vistar trust |
Publisher |
yug nirman Press, Mathura |
Size |
small |
TOC |
1. नव जागरण के देवदूत- महायोगी अरविंद
2. जन्म और शिक्षा
3. जीवन का मार्ग परिवर्तन
4. सार्वजनिक जीवन की तैयारी
5. योगाभ्यास की प्रगति
6. क्रांतिकारी आंदोलन में सहयोग
7. राजनीतिक संघर्ष का युग
8. गिरफ्तारी और कारागावास
9. राजनीति का त्याग और अध्यात्म का प्रचार
10. पांडिचेरी में आरंभिक जीवन
11. मीरा रिचार्ड का आगमन
12. राजनीति से पृथकता
13. अरविंद-आश्रम से विकास
14. आर्य का प्रकाशन और अन्य रचनाएँ
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