Preface |
यह पुस्तक आपके हाथों में बुद्ध गाथा लेकर आयी है । आज से लगभग २५०० वर्ष पहले इसी पुण्य दिन धरती की गोद में महाराज शुद्धोधन के यहाँ राजकुमार सिद्धार्थ ने जन्म लिया था । इसके बाद एक-एक करके कई बैसाख पूर्णिमा आयी और चली गयीं । लेकिन फिर से एक महापुण्यवती बैसाख पूर्णिमा आयी, जब महातपस्वी सिद्धार्थ की अन्तर्चेतना में बुद्ध ने जन्म लिया । इस अनूठे जन्मोत्सव को मनुष्यों के साथ देवों ने भी अलौकिक रीति से मनाया । इस पुण्य घड़ी में सिद्धार्थ सम्यक् सम्बुद्ध बन गए और बैसाख पूर्णिमा बुद्ध पूर्णिमा में रूपान्तरित हो गयी ।
इस पूर्णिमा से जुड़ी दोनों ही कथाएँ बड़ी ही मीठी और प्यारी हैं । आज से २५०० साल पहले, जिस दिन सिद्धार्थ का जन्म हुआ, समूची कपिलवस्तु में उत्सव की धूम मच गयी । पूरा नगर सज गया । रात भर लोगों ने दिए जलाए नाचे । उत्सव की घड़ी थी, चिर दिनों की प्रतीक्षा पूरी हुई थी । बड़ी पुरानी अभिलाषा थी पूरे राज्य की । इसलिए राजकुमार को सिद्धार्थ नाम दिया गया । सिद्धार्थ का मतलब होता है, जीवन का अर्थ सिद्ध हो जाना, अभिलाषा का पूरा हो जाना । |
TOC |
1. पहले सेवा, फिर उपदेश
2. शांति से बढ़कर कोई सुख नहीं
3. बुद्धत्व ही जीवन का परम स्रोत
4. सत्य प्रकट होता है एकांत मौन में
5. बोधि के दिव्यास्त्रों से विकारों का हनन
6. प्रभु प्रेम की कसौटी, उनका ध्यान
7. स्वच्छता-निर्मलता का मर्म
8. और, अंगुलिमाल अरिहन्त हो गया
9. ध्यान की आँख, विवेक की आँख
10. आसक्ति अनंत बार मारती है
11. क्रोध छोड़े, अभिमान त्यागें
12. नमामि देवं भवरोग वैद्यम्
13. महानिर्वाण की अनुभूति
14. जीवन का अपने मूल स्रोत से जा मिलना
15. श्रद्धा की परिणति
16. गलत प्रव्रज्या में रमण दु:खदायी है
17. अहंकार गंदगी है, मल है
18. सद्गुरु का स्मरण
19. मनुष्य अपना स्वामी स्वयं
20. प्रभु का सान्निध्य
21. अब फिर बज उठे रणभेरी
22. वीतराग रेवत की सान्निध्य का चमत्कार
23. बुद्धत्व के सान्निध्य से जन्मा ब्राह्मणत्व
24. मोहजनित भ्रांति से प्रभु ने उबारा
25. सच्चा भिक्षु
26. जहाँ सत्य है, निश्छलता है, वहीं विजय है
27. बन्धन मुक्त ही ब्राह्मण है
28. सच्चा ब्राह्मण
29. पूर्णा चली पूर्णता की डगर पर
30. बहिरंग नहीं, प्रभु के अंतरंग को जाना
31. निंदा छोडो- ध्यान सीखो
|