Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Description |
कथा-सहित्य की लोकप्रियता के संबंध में कुछ कहना व्यर्थ होगा। प्राचीन काल में 18 पुराण लिखे गए। उनसे भी काम न चला तो 18 उपपुराणों की रचना हुई। इन सब में कुल मिलाकर 10,000,000 श्लोक हैं, जबकि चारों वेदों में मात्र 20 हजार मंत्र हैं। इसके अतिरिक्त भी संसार भर में इतना कथा साहित्य सृजा गया है कि उन सबको तराजू के पलड़े पर रखा जाए और अन्य साहित्य को दूसरे पर कथाऐं भी भारी पड़ेंगी।
समय परिवर्तनशील है। उसकी परिस्थितियाँ, मान्यताएं, प्रथाऐं, समस्याऐं एवं आवश्यकताऐं भी बदलती रहती हैं। तदनुरुप ही उनके समाधान खोजने पड़ते हैं। इस आश्वत सृष्टिक्रम को ध्यान में रखते हुए ऐसे युग साहित्य की आवश्यकता पड़ती रही है, जिसमें प्रस्तुत प्रसंगो प्रकाश मार्गदर्शन उपलब्ध हो सके। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अनेकानेक मनःस्थिति वालों के लिए उनकी परिस्थिति के अनुरूप समाधान ढूँढ़ निकालने में सुविधा दे सकने की दृष्टि से इस प्रज्ञा पुराण की रचना की गई, इसे चार खण्डों में प्रकाशित किया गया है।
1. प्रज्ञा पुराण-1
2 प्रज्ञा पुराण-2
3 प्रज्ञा पुराण-3
4 प्रज्ञा पुराण-4
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Dimensions |
18.5X24.2 cm |
Edition |
2014 |
Language |
Hindi |
PageLength |
268 |
Preface |
प्रज्ञा पुराण के इस तीसरे खंड में एक ऐसे प्रसंग को लिया गया है, जो हमारे दैनंदिन जीवन का अंग है, जिसकी उपेक्षा के कारण आज चारों ओर कलह- विग्रह खड़े दृष्टिगोचर होते हैं ।। गृहस्थ जीवन, सह जीवन, पारिवारिकता की धुरी पर ही इस विश्व परिवार का समग्र ढाँचा विनिर्मित है ।। मनुष्य जीवन की यह अवधि ऐसी है, जिस पर यदि सर्वाधिक ध्यान दिया जा सके, तो मानव में देवत्व एवं धरती पर स्वर्ग के अवतरण के द्विविध उद्देश्य भली- भांति पूरे होते रह सकते हैं ।। सतयुग के मूल में यही "वसुधैव कुटुम्बकम्" का दर्शन समाहित नजर आता है ।।
परिवार संस्था के विभिन्न पक्षों यथा दांपत्य जीवन, गृहस्थ दायित्व, नारी, शिशु, वृद्धजन, सुसंस्कारिता संवर्द्धन एवं अंत में विश्व परिवार को इस खंड में कथा- उपाख्यानों एवं दृष्टान्तों के माध्यम से सुग्राह्य ढंग से प्रतिपादित करने का प्रयास किया गया है ।। सभी परिवारों में पढ़ी- पढ़ाई जाने वाली गीता- उपनिषद् सार के रूप में इसे समझा जा सकता है ।। |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
big |
TOC |
प्राक्कथन
प्रथम अध्याय- परिवार-व्यवस्था प्रकरण
द्वितीय अध्याय- गृहस्थ-जीवन प्रकरण
तृतीय अध्याय- नारी-माहात्म्य प्रकरण
चतुर्थ अध्याय- शिशु-निर्माण प्रकरण
पंचम अध्याय- वृद्धजन माहात्म्य प्रकरण
षष्ठ अध्याय- सुसंस्कारिता-संवर्द्धन प्रकरण
सप्तम अध्याय- विश्व-परिवार प्रकरण
वंदना परिशिष्ट
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