Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Descriptoin |
क्रान्तिधर्मी साहित्य-युग साहित्य नाम से विख्यात यह पुस्तकमाला युगद्रष्टा-युगसृजेता प्रज्ञापुरुष पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा १९८९-९० में महाप्रयाण के एक वर्ष पूर्व की अवधि में एक ही प्रवाह में लिखी गयी है। प्राय: २० छोटी -छोटी पुस्तिकाओं में प्रस्तुत इस साहित्य के विषय में स्वयं हमारे आराध्य प.पू. गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था- ‘‘हमारे विचार, क्रान्ति के बीज हैं। ये थोड़े भी दुनियाँ में फैल गए, तो अगले दिनों धमाका कर देंगे। सारे विश्व का नक्शा बदल देंगे।..... मेरे अभी तक के सारे साहित्य का सार हैं।..... सारे जीवन का लेखा-जोखा हैं।..... जीवन और चिंतन को बदलने के सूत्र हैं इनमें।..... हमारे उत्तराधिकारियों के लिए वसीयत हैं।..... अभी तक का साहित्य पढ़ पाओ या न पढ़ पाओ, इसे जरूर पढ़ना। इन्हें समझे बिना भगवान के इस मिशन को न तो तुम समझ सकते हो, न ही किसी को समझा सकते हो।..... प्रत्येक कार्यकर्ता को नियमित रूप से इसे पढ़ना और जीवन में उतारना युग-निर्माण के लिए जरूरी है। तभी अगले चरण में वे प्रवेश कर सकेंगे। ..... यह इस युग की गीता है। एक बार पढ़ने से न समझ आए तो सौ बार पढ़ना और सौ लोगों को पढ़ाना। उनसे भी कहना कि आगे वे १०० लोगों को पढ़ाएँ। हम लिखें तो असर न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। जैसे अर्जुन का मोह गीता से भंग हुआ था, वैसे ही तुम्हारा मोह इस युग-गीता से भंग होगा।..... मेरे जीवन भर के साहित्य इस शरीर के वजन से भी ज्यादा भारी है। मेरे जीवन भर के साहित्य को तराजू के एक पलड़े पर रखें और क्रान्तिधर्मी साहित्य को दूसरे पलड़े पर, तो इनका वजन ज्यादा होगा।..... महाकाल ने स्वयं मेरी उँगलियाँ पकड़कर ये साहित्य लिखवाया है। |
Dimensions |
121mmX181mmX2mm |
Edition |
2011 |
Language |
Hindi |
PageLength |
32 |
Preface |
ब्रह्मा जी प्रात:काल संध्या-वन्दन के लिए बैठे। चुल्लू में आचमन के लिए पानी लिया। उसमें छोटा सा कीड़ा विचरते देखा। ब्रह्माजी ने सहज उदारतावश उसे जल भरे क मण्डल में छोड़ दिया और अपने क्रिया-कृत्य में लग गए। थोड़े ही समय में वह कीड़ा बढ़कर इतना बड़ा हो गया कि सारा क मण्डल ही उससे भर गया। अब उसे अन्यत्र भेजना आवश्यक हो गया। उसे समीपवर्ती तालाब में छोड़ा गया। देखा गया कि वह तालाब भी उस छोटे से कीड़े के विस्तार से भर गया। इतनी तेज प्रगति और विस्तार को देखकर वे स्वयं आश्चर्यचकित हुए और एक दो बार इधर-उधर उठक-पटक करने के बाद उसे समुद्र में पहुँचा आए। आश्चर्य यह कि संसार भर का जल थल क्षेत्र उसी छोटे कीड़े के रूप में उत्पन्न हुई मछली ने घेर लिया।
इतना विस्तार आश्चर्यजनक, अभूतपूर्व, समझ में न आने योग्य था। जीवधारियों की कुछ सीमाएँ, मर्यादाएँ होती है, वे उसी के अनुरूप गति पकड़ते हैं, पर यहाँ तो सब कुछ अनुपम था। ब्रह्माजी जिनने उस मछली की जीवन-रक्षा और सहायता की थी, आश्चर्यचकित रह गए। बुद्धि के काम न देने पर वे उस महामत्स्य से पूछ ही बैठे कि यह सब क्या हो रहा है? मत्स्यावतार ने कहा-मैं जीवधारी दीखता भर हूँ, वस्तुत: परब्रह्म हूँ। इस अनगढ़ संसार को जब भी सुव्यवस्थित करना होता है, तो उस सुविस्तृत कार्य को सम्पन्न करने के लिए अपनी सत्ता को नियोजित करता हूँ। तभी अवतार प्रयोजन की सिद्धि बन पड़ती है।
ब्रह्मा जी और महामत्स्य आपस में वार्तालाप करते रहे। सृष्टि को नई साज-सज्जा के साथ सुन्दर-समुन्नत करने की योजना बनाकर, उस निर्धारण की जिम्मेदारी ब्रह्मा जी को सौंपकर, वे अन्तर्ध्यान हो गए और वचन दे गए कि जब कभी अव्यवस्था को व्यवस्था में बदलने की आवश्यकता पड़ेगी, उसे सम्पन्न करने के लिए मैं तुम्हारी सहायता करने के लिए अदृश्य रूप में आता रहूँगा।
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Publication |
Yug Nirman Yogana Vistar Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Size |
normal |
TOC |
1. तुच्छ को महान बनाने वाली
2. तीव्र विस्तार चेतना का स्वभाव
3. उसी धारा में प्रस्तुत एक उदाहरण
4. अदृश्य चेतना द्वारा-संचालन
5. बड़े प्रयोजन के लिए बड़े कदम
6. नए लक्ष्य-नए उद्घोष
7. समय की माँग के अनुरूप पुरुषार्थ
8. समझदारी शंका में नहीं-सहयोग में है
9. वह जिसकी उपेक्षा नहीं ही करें
10. ईश चेतना से जुड़ें
11. थोड़ा ही सही, नियमित करें
12. प्राण-चेतना प्रखर बनाए रखें |
TOC |
1 शिक्षा ही नहीं विद्या भी
2 भाव संवेदनाओं की गंगोत्री
3 संजीवनी विद्या का विस्तार
4 आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
5 जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
6 इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण
7 महिला जागृति अभियान
8 इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १
9 इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग २
10 सतयुग की वापसी
11 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग २
12 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग १
13 परिवर्तन के महान क्षण
14 महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण
15 प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
16 नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी
17 समस्याएँ आज की समाधान कल के
18 मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
19 स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा
20 जीवन देवता की साधना-आराधना
21 समयदान ही युग धर्म
22 नवयुग का मत्स्यावतार
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