MANAH STHITI BADLE TO PARISTHITI BADLE
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TOC 1 शिक्षा ही नहीं विद्या भी 2 भाव संवेदनाओं की गंगोत्री 3 संजीवनी विद्या का विस्तार 4 आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना 5 जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र 6 इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण 7 महिला जागृति अभियान 8 इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १ 9 इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग २ 10 सतयुग की वापसी 11 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग २ 12 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग १ 13 परिवर्तन के महान क्षण 14 महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण 15 प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया 16 नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी 17 समस्याएँ आज की समाधान कल के 18 मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले 19 स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा 20 जीवन देवता की साधना-आराधना 21 समयदान ही युग धर्म 22 नवयुग का मत्स्यावतार
TOC 1. युगधर्म का परिपालन अनिवार्य 2. गरीबों द्वारा अमीरी का आडम्बर 3. तीनों उद्यान फलेंगे और निहाल करेंगे 4. दुरुपयोग के रहते अभाव कैसे मिटे 5. साधनों से भी अधिक सद्गुणों की आवश्यकता 6. उदारता अपनाई जाये 7. मन: स्थिति बदले, तो परिस्थिति बदले 8. परिवर्तन का आधार तो ढूँढ़ें
Author Pandit Shriram Sharma Aacharya
Descriptoin क्रान्तिधर्मी साहित्य-युग साहित्य नाम से विख्यात यह पुस्तकमाला युगद्रष्टा-युगसृजेता प्रज्ञापुरुष पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा १९८९-९० में महाप्रयाण के एक वर्ष पूर्व की अवधि में एक ही प्रवाह में लिखी गयी है। प्राय: २० छोटी -छोटी पुस्तिकाओं में प्रस्तुत इस साहित्य के विषय में स्वयं हमारे आराध्य प.पू. गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था- ‘‘हमारे विचार, क्रान्ति के बीज हैं। ये थोड़े भी दुनियाँ में फैल गए, तो अगले दिनों धमाका कर देंगे। सारे विश्व का नक्शा बदल देंगे।..... मेरे अभी तक के सारे साहित्य का सार हैं।..... सारे जीवन का लेखा-जोखा हैं।..... जीवन और चिंतन को बदलने के सूत्र हैं इनमें।..... हमारे उत्तराधिकारियों के लिए वसीयत हैं।..... अभी तक का साहित्य पढ़ पाओ या न पढ़ पाओ, इसे जरूर पढ़ना। इन्हें समझे बिना भगवान के इस मिशन को न तो तुम समझ सकते हो, न ही किसी को समझा सकते हो।..... प्रत्येक कार्यकर्ता को नियमित रूप से इसे पढ़ना और जीवन में उतारना युग-निर्माण के लिए जरूरी है। तभी अगले चरण में वे प्रवेश कर सकेंगे। ..... यह इस युग की गीता है। एक बार पढ़ने से न समझ आए तो सौ बार पढ़ना और सौ लोगों को पढ़ाना। उनसे भी कहना कि आगे वे १०० लोगों को पढ़ाएँ। हम लिखें तो असर न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। जैसे अर्जुन का मोह गीता से भंग हुआ था, वैसे ही तुम्हारा मोह इस युग-गीता से भंग होगा।..... मेरे जीवन भर के साहित्य इस शरीर के वजन से भी ज्यादा भारी है। मेरे जीवन भर के साहित्य को तराजू के एक पलड़े पर रखें और क्रान्तिधर्मी साहित्य को दूसरे पलड़े पर, तो इनका वजन ज्यादा होगा।..... महाकाल ने स्वयं मेरी उँगलियाँ पकड़कर ये साहित्य लिखवाया है।
Dimensions 121mmX181mmX2mm
Edition 2014
Language Hindi
PageLength 32
Preface संसार में चिरकाल से दो प्रचण्ड-धाराओं का संघर्ष होता चला आया है। इसमें से एक की मान्यता है कि अपेक्षित साधनों की बहुलता से ही प्रसन्नता और प्रगति सम्भव है। इसके विपरीत दूसरी विचारधारा यह है कि मन:स्थिति ही परिस्थितियों की जन्मदात्री है। उसके आधार पर ही साधनों का आवश्यक उपार्जन और सत्प्रयोजनों के लिए सदुपयोग बन पड़ता है। वह न हो, तो इच्छित वस्तु पर्याप्त मात्रा में रहने पर भी अभाव और असन्तोष पनपता दीख पड़ता है। एक विचारधारा कहती है कि यदि मन को साध सँभाल लिया जाये, तो निर्वाह के आवश्यक साधनों में कमी कभी नहीं पड़ सकती। कदाचित् पड़े भी, तो उस अभाव के साथ संयम, सहानुभूति, सन्तोष जैसे सद्गुणों का समावेश कर लेने पर जो है, उतने में ही भली प्रकार काम चल सकता है। कोई अभाव नहीं अखरता। दूसरी का कहना है कि जितने अधिक साधन, उतना अधिक सुख। समर्थता और सम्पन्नता होने पर दूसरे दुर्बलों के उपार्जन-अधिकार को भी हड़प कर मन चाहा मौज-मजा किया जा सकता है। दोनों के अपने अपने तर्क, आधार और प्रतिपादन हैं। प्रयोग भी दोनों का ही चिरकाल से होता चला आया है, पर अधिकांश लोग अपनी-अपनी पृथक मान्यतायें बनाये हुये चले आ रहे हैं। ऐसा सुयोग नहीं आया कि सभी लोग कोई सर्वसम्मत मान्यता अपना सकें। अपने अपने पक्ष के प्रति हठपूर्ण रवैया अपनाने के कारण, उनके बीच विग्रह भी खड़े होते रहते हैं। इसी को देवासुर संग्राम के नाम से जाना जाता है। पदार्थ ही सब कुछ हैं-यह मान्यता दैत्य पक्ष की है। वह भावनाओं को भ्रान्ति और प्रत्यक्ष को प्रामाणिक मानता है। देव पक्ष, भावनाओं को प्रधान और पदार्थ को गौण मानता है। दर्शन की पृष्ठभूमि पर इसी को भौतिकता और आध्यात्मिकता नाम दिया जाता है। हठवाद ने दोनों ही पक्षों को अपनी ही बात पर अड़े रहने के लिए भड़काया है।
Publication Yug Nirman Yogana Vistrar Trust, Mathura
Publisher Yug Nirman Yogana, Mathura



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