Preface |
ज्योतिष क्या है?
आकाश में स्थित ज्योतिर्पिण्डों के संचार और उनसे बनने वाले गणितागत पारस्परिक संबंधों के पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करने वाली विद्या का नाम ज्योतिष शास्त्र है ।
ज्योतिष का इतिहास
वेद के 6 अंग- शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छन्द और ज्योतिष हैं । वेद अपौरुषेय है इसलिये ज्योतिष जो कि वेदांग है वह भी अपौरुषेय है, अर्थात् सृष्टि के आदि से चला आ रहा है । कालक्रम से ज्योतिष शास्त्र के 18 प्रणेता माने गये हैं ।
यथा-
सूर्य: पितामहो व्यासो वशिष्ठोऽत्रिपराशर: । कश्यपो नारदो गर्गो मरीचिर्मनुरंगिरा:।।
लोमशो पौलिशश्चैव व्यवनो यवनोमृगु:। शौनकोऽष्ठादश ह्येते ज्योतिशास्त्रप्रवर्तका:।।
ज्योतिष शास्त्र के उक्त 18 प्रणेताओं के अतिरिक्त ज्योतिष की अपने शोधों और व्याख्या के द्वारा अभिवृद्धि करने वाले विद्वानों की एक लम्बी श्रृंखला है । ज्योतिष के प्रवर्तक ऋषियों के अनेक ग्रन्थ यवनों के आक्रमणों में नष्ट हो गये तथा बहुत से लुप्त हो गये हैं । फिर भी ज्योतिष की अमूल्य सामग्री प्रकाशित और अप्रकाशित रूप में सभी देशों में विद्यमान हैं ।
ज्योतिष का विस्तार
ज्योतिष के प्रणेताओं ने बड़ी सूझबूझ से ग्रह-गणित और ग्रह-रश्मि के प्रभावों- दोनों को मिलाकर त्रिस्कन्ध ज्योतिष शास्त्र का निर्माण किया । स्कन्ध का अर्थ यहाँ विभागों से है । ज्योतिष के तीन भाग हैं । इन तीन भागों की अनेक शाखाएँ हो गई हैं । वाराहमिहिराचार्य ने कहा है-
ज्योति: शास्त्रमनेकभेदविषयं स्कन्धत्रयाधिष्ठितम् ।
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TOC |
1. ज्योतिष-ग्रह, नक्षत्र और राशियाँ क्या हैं ?
2. नक्षत्र, राशि, ग्रह-परिचय एवं गुणधर्म
3. देश विदेश के सूर्योदय एवं लग्न निकालने की विधि
4. देश-विदेश के ग्रह-स्पष्ट, भाव-स्पष्ट, षड्वर्ग, दशा साधन एवं सक्षिप्त रूप मे
5. दशाफल निरुपण सारिणी
6. द्वादश भावों से विचारणीय विषय
7. सूर्यादि ग्रहों से विचारणीय विषय
8. द्वादश भावो में भिन्न-भिन्न राशियो का फल
9. भावेश का भिन्न-भिन्न भावो का फल
10. ग्रहो की दृष्टि का फल
11. शरीर, माता-पिता, पत्नी, पुत्रादि विषयक विचार
12. निरोगता विचार
13. आजीविका विचार
14. विशिष्ट राजयोग विचार
15. मंगल विचार एवं अष्टकवर्गपद्धति
16. मूल विचार
17. वास्तुशास्त्र का संक्षिप्त विवरण
18. असली लाल किताब के द्वादश भावगत ग्रहों के फल एव उपचार
19. अनुभूत प्रश्न विषयक-योगों पर विचार
20. संक्षिप्त हस्तरेखा विज्ञान
21. सारिणी
( क) क्रांति, वेलान्तर चरसारिणी
( ख) साम्पातिक काल की लग्न सारिणी एवं घटी पलादि की लग्न सारिणी
( ग) देश-विदेश के प्रमुख नगरों के आक्षांश, रेखांश व मध्यमानार सारिणी
( घ)षड्वर्ग, लघुरित्थ-सारिणी, दशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर सारिणी
( ङ) विशिष्ट कुण्डलियाँ |