Author |
pt Shriram sharma acharya |
Descriptoin |
1 उपासना के दो चरण जप और ध्यान
2 गायत्री कामधेनु है
3 गायत्री साधना क्यो ? और कैसे ?
4 गायत्री की गुप्त शक्तियाँ
5 गायत्री की शक्ति और सिद्धि
6 आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
7 गायत्री चालीसा
8 गायत्री से संकट निवारण
9 गायत्री की प्रचंड प्राण ऊर्जा
|
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Edition |
2014 |
Language |
Hindi |
PageLength |
32 |
Preface |
गायत्री परमात्मा की वह इच्छा शक्ति है, जिसके कारण सारी सृष्टि चल रही है । छोटे से परमाणु से लेकर पूरे विश्व-ब्रह्मांड तक व नदी-पर्वतों से लेकर पृथ्वी, चाँद व सूर्य तक सभी उसी की शक्ति के प्रभाव से गतिशील हैं । वृक्ष-वनस्पतियों में जीवन की तरंगें उसी के कारण उठ रही हैं । अन्य प्राणियों में उसका उतना ही अंश मौजूद है, जिससे कि उनका काम आसानी से चल सके । मनुष्य में उसकी हाजिरी सामान्य रूप से मस्तिष्क में बुद्धि के रूप में होती है । अपना जीवन निर्वाह और सुख-सुविधा बढ़ाने का काम वह इसी के सहारे पूरा करता है । असामान्य रूप में यह ऋतंभरा प्रज्ञा अर्थात सद्बुद्धि के रूप में प्रकट होती है । जो उसे सही गलत की समझ देकर जीवन लक्ष्य के रास्ते पर आगे बढ़ाती है । आमतौर पर यह मनुष्य के दिलोदिमाग की गहराई में सोई रहती है । इसको जिस विधि से जगाया जाता है, उसको साधना कहते हैं । इसके जागने पर मनुष्य का संबंध ईश्वरीय शक्ति से जुड़ स्वयं परमात्मा तो मूलरूप में निराकार हैं, सब कुछ तटस्थ भाव से देखते हुए शांत अवस्था में रहते हैं । सृष्टि के प्रारंभ में जब उनकी इच्छा एक से अनेक होने की हुई, तो उनकी यह चाहना व इच्छा एक शक्ति बन गई । इसी के सहारे यह सारी सृष्टि बनकर खड़ी हो गई । सृष्टि को बनाने वाली प्रारंभिक शक्ति होने के कारण इसे आदिशक्ति कहा गया । पूरी विश्व व्यवस्था के पीछे और अंदर जो एक संतुलन और सुव्यवस्था दिख रही है, वह गायत्री शक्ति का ही काम है । |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
normal |
TOC |
• गायत्री शक्ति क्या है
• गायत्री मंत्र के उच्चारण से दिव्य शक्तियों का जागरण
• सद्गुन बढ़ाने वाला आंतरिक हेरफेर
• समृद्धि और सफलताओं वाली गायत्री
• संकट मोचन गायत्री
• धरती की कामधेनू गायत्री
• अज्ञात अर्थात नासमझी
• हर युग में गायत्री महिमा का गुणगान
|
TOC |
नवरात्रि को देवत्व के स्वर्ग से धरती पर उतरने का विशेष पर्व माना जाता है। उस अवसर पर सुसंस्कारी आत्माएँ अपने भीतर समुद्र मंथन जैसी हलचलें उभरती देखते हैं। जो उन्हें सुनियोजित कर सकें वे वैसी ही रत्न राशि उपलब्ध करते हैं जैसी कि पौराणिक काल में उपलब्ध हुई मानी जाती हैं। इन दिनों परिष्कृत अन्तराल में ऐसी उमंगें भी उठती हैं जिनका अनुसरण सम्भव हो सके तो दैवी अनुग्रह पाने का ही नहीं देवोपम बनने का अवसर भी मिलता है यों ईश्वरीय अनुग्रह सत्पात्रों पर सदा ही बरसता है, पर ऐसे कुछ विशेष अवसर मिल सके। इन अवसरों को पावन पर्व कहते हैं। नवरात्रियों का पर्व मुहूर्तों में विशेष स्थान है। उस अवसर पर देव प्रकृति की आत्माएँ किसी अदृश्य प्रेरणा से प्रेरित होकर आत्म कल्याण एवं लोक मंगल क्रिया कलापों में अनायास ही रस लेने लगती हैं।
|