SAVDHANI AUR SURAKSHA
Price: ₹ 5/-



Product Detail

Author Pt. shriram sharma
Dimensions 12 cm x 18 cm
Language Hindi
PageLength 24
Preface गायत्री मंत्र का बीसवाँ अक्षर "न" सदैव सावधानी रखने और अपनी रक्षा को उचित व्यवस्था करने की शिक्षा देता हैं- न: श्रण्वेकामिमां वार्ता सदाभव । स्वपमाणं नरं नूनं ह्याक्रामन्ति विपक्षिणः।। अर्थात्-"इस शिक्षा को ध्यानपूर्वक सुनो कि 'सदा सावधान रहना चाहिए । असावधान मनुष्य पर ही शत्रुगण प्राय: आक्रमण कर देते हैं ।" असावधानी, आलस्य, बेखबरी अदूरदर्शिता ऐसी भूले हैं जिन्हें अनेक प्रकार की आपत्तियों का उद्गम स्थल कह सकते हैं । गफलत में रहने वाले पर किसी भी तरफ से हमला हो सकता है । असावधानी में एक ऐसा दूषित तत्व पाया जाता है कि उसके फल से अनेक प्रकार की हानियाँ एवं विपत्तियाँ एकत्रित हो जाती हैं । असावधान आलसी मनुष्य एक प्रकार का अर्द्धमृत है । मरी हुई लाश को पड़ी हुई देखकर जैसे चली, कौए, कुत्ते, सियार गिद्ध आदि दूर-दूर से दौड़ कर जमा हो जाते हैं, वैसे ही असावधान मनुष्य के ऊपर आक्रमण करने वाले तत्व कहीं न कहीं से आकर घात लगाते हैं । जो स्वास्थ्य-रक्षा के लिए जागरूक नहीं है उसे देर-सबेर में बीमारियाँ आ दबोचेंगी । जो नित्य आने वाले उतार-चढ़ावों से बेखबर रहता है वह किसी दिन दिवालिया बन कर रहेगा । जो काम क्रोध लोभ, मोह, मद, मत्सर सरीखे मानसिक शहरों की गतिविधियों की ओर से आँखें बन्द किए रहता है वह कुविचारों और कुकर्मों के गर्त में गिरे बिना न रहेगा । जो दुनियाँ के छल, फरेव, ठगी, लूट, अन्याय, स्वार्थपरता, शैतानी आदि की ओर से सावधान नहीं रहता उसे उल्लू बनाने वाले, ठगने वाले, सताने वाले अनेकों पैदा हो जाते हैं । जो जागरूक नहीं, जो अपनी रक्षा के लिए प्रयत्नशील नहीं रहता, उसे दुनियाँ के शैतानी तत्व बुरी तरह नोंच खाते हैं ।
Publication Yug nirman yojana press
Publisher Yug Nirman Yojana Vistara Trust
Size normal
TOC 1 ईश्वर का विराट रुप 2 ब्रह्मज्ञान का प्रकाश 3 शक्ति का सदुपयोग 4 धन का सदुपयोग 5 आपत्तियों में धैर्य 6 नारी की महानता 7 गृहलक्ष्मी की प्रतिष्ठा 8 प्रकृति का अनुसरण 9 मानसिक संतुलन 10 सहयोग और सहिष्णुता 11 इंद्रिय संयम 12 परमार्थ और स्वार्थ का समन्वय 13 सर्वतोमुखी उन्नति 14 ईश्वरीय न्याय 15 विवेक की कसौटी 16 जीवन और मृत्यु 17 धर्म की सुदृढ़ धारणा 18 उदारता और दूरदर्शिता 19 स्वाध्याय और सत्संग 20 आत्म ज्ञान और आत्म कल्याण 21 पवित्र जीवन 22 प्राणघातक व्यसन 23 सावधानी और सुरक्षा 24 संतान के प्रति कर्तव्य 25 शिष्टाचार और सहयोग
TOC 1. जागरूकता का महत्त्व 2. लापरवाही की हानिकारक आदत 3. असावधानी का प्रतिकार 4. नियमबद्ध बनने की आवश्यकता 5. आत्म-रक्षा और नैतिकता 6. कुमार्गगामियों के सुधार का उपाय 7. आसुरी शक्तियों से संघर्ष करने में छल का प्रयोग 8. पाप से सावधान रहो



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