PAVITRA JIVAN
Price: ₹ 5/-



Product Detail

Author Pt. shriram sharma
Dimensions 12 cm x 18 cm
Language Hindi
PageLength 24
Preface गायत्री मंत्र का बारहवाँ अक्षर ' व ' मनुष्य को पवित्र जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देता है- व- वस नित्यं पवित्र: सन् बाह्याध्भ्यन्तरतस्तथा ।। यत: पवित्रतायां हि राजतेऽतिप्रसनता ।। अर्थात- 'मनुष्य को बाहर और भीतर से पवित्र रहना चाहिए क्योंकि पवित्रता में ही प्रसन्नता रहती है ।। ' पवित्रता में चित्त की प्रसन्नता, शीतलता, शांति, निश्चितता, प्रतिष्ठा और सचाई छिपी रहती है ।। कूड़ा- करकट, मैल- विकार, पाप, गंदगी, दुर्गंध, सड़न, अव्यवस्था और घिचपिच से मनुष्य की आतंरिक निकृष्टता प्रकट होती है ।। आलस्य और दरीद्र, पाप और पतन जहाँ रहते हैं, वहीं मलिनता या गंदगी का निवास रहता है ।। जो ऐसी प्रकृति के हैं, उनके वस्त्र, घर, सामान, शरीर, मन, व्यवहार, वचन, लेन- देन सबमें गंदगी और अव्यवस्था भरी रहती है ।। इसके विपरीत जहाँ चैतन्यता, जागस्कता, सुरुचि, सात्विकता होगी, वहाँ सबसे पहले स्वच्छता की ओर ध्यान जाएगा ।। सफाई, सादगी और सुव्यवस्था में ही सौंदर्य है, इसी को पवित्रता कहते है ।। गंदे खाद से गुलाब के सुंदर फूल पैदा होते है, जिसे मलिनता को साफ करने में हिचक न होगी, वही सौंदर्य का सच्चा उपासक कहा जाएगा ।। मलिनता से घृणा होनी चाहिए, पर उसे हटाने या दूर करने में तत्परता होनी चाहिए ।। आलसी अथवा गंदगी की आदत वाले प्राय :: फुरसत न मिलने का बहाना करके अपनी कुरुचि पर परदा डाला करते हैं ।। पवित्रता एक आध्यात्मिक गुण है ।। आत्मा स्वभावत पवित्र और सुंदर है, इसलिए आत्मपरायण व्यक्ति के विचार, व्यवहार तथा वस्तुएँ भी सदा स्वच्छ एवं सुंदर रहते हैं ।। गंदगी उसे किसी भी रूप में नहीं सुहाती, गंदे वातावरण में उसकी साँस घुटती है, इसलिए वह सफाई के लिए दूसरों का आसरा नहीं टटोलता, अपनी समस्त वस्तुओं को स्वच्छ बनाने के लिए वह सबसे पहले अवकाश निकालता है ।।
Publication Yug Nirman Yojana Vistara Trust
Publisher Yug Nirman Yojana Vistara Trust
Size normal
TOC 1. पवित्र जीवन 2. स्वच्छता दैवी गुण है 3. शरीर की भीतरी अंगों की सफाई 4. आन्तरिक विकारों के दुष्परिणाम 5. उपवास से मानसिक पवित्रता 6. धार्मिक उपवास और आत्मा की पवित्रता 7. पवित्रता और मनोविकारों का संबंध 8. काम वासना विकास 9. क्रोध के भयंकर परिणाम 10. लोभ से जीवन नष्ट होता है 11. आध्यात्मिक पवित्रता का मार्ग 12. पवित्रता में ही जीवन की सार्थकता
TOC 1 ईश्वर का विराट रुप 2 ब्रह्मज्ञान का प्रकाश 3 शक्ति का सदुपयोग 4 धन का सदुपयोग 5 आपत्तियों में धैर्य 6 नारी की महानता 7 गृहलक्ष्मी की प्रतिष्ठा 8 प्रकृति का अनुसरण 9 मानसिक संतुलन 10 सहयोग और सहिष्णुता 11 इंद्रिय संयम 12 परमार्थ और स्वार्थ का समन्वय 13 सर्वतोमुखी उन्नति 14 ईश्वरीय न्याय 15 विवेक की कसौटी 16 जीवन और मृत्यु 17 धर्म की सुदृढ़ धारणा 18 उदारता और दूरदर्शिता 19 स्वाध्याय और सत्संग 20 आत्म ज्ञान और आत्म कल्याण 21 पवित्र जीवन 22 प्राणघातक व्यसन 23 सावधानी और सुरक्षा 24 संतान के प्रति कर्तव्य 25 शिष्टाचार और सहयोग



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