Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Edition |
2015 |
Language |
Hindi |
PageLength |
24 |
Preface |
गायत्री का ग्यारहवाँ अक्षर दे हमको इंद्रियों पर नियंत्रण रखने की शिक्षा देता है-
देयानि स्ववशे पुंसा स्वेन्द्रियाण्यखिलानि वै ।।
असंयतानि खादन्तीन्द्रियाण्येतानि स्थामिनम् ।।
अर्थात- अपनी इंद्रियों को वश में रखना चाहिए ।। असंयत इंद्रियाँ स्वामी का नाश कर देती हैं ।।
इंद्रियाँ आत्मा के औजार हैं, सेवक हैं ।। परमात्मा ने इन्हें इसलिए प्रदान किया है कि इनकी सहायता से आत्मा की आवश्यकताएं पूरी हों और सुख मिले ।। सभी इंद्रियाँ बड़ी उपयोगी हैं ।। सभी का कार्य जीव को उत्कर्ष और आनंद प्राप्त कराना है ।। यदि उनका सदुपयोग किया जाए तो मनुष्य निरंतर जीवन का मधुर रस चखता हुआ जन्म को सफल बना सकता है ।।
किसी भी इंद्रिय का उपयोग पाप नहीं है ।। सच तो यह है कि अंतःकरण की विविध क्षुधाओं को, तृषाओं को तृप्त करने का इंद्रियाँ एक उत्तम माध्यम हैं, जैसे- पेट की भूख- प्यास को न बुझाने से शरीर का स्वास्थ्य और संतुलन बिगड़ जाता है, वैसे ही सूक्ष्मशरीर की ज्ञानेंद्रियों की क्षुधा उचित रीति से तृप्त नहीं की जाती तो आतंरिक क्षेत्र का संतुलन बिगड़ जाता है और अनेक प्रकार की मानसिक गड़बड़ी पैदा होने लगती है ।।
इंद्रिय भोगों की बहुधा निंदा की जाती है ।। उसका वास्तविक तात्पर्य यह है कि अनियंत्रित इंद्रियां स्वाभाविक एवं आवश्यक मर्यादा का उल्लंघन करके इतनी स्वेच्छाचारी एवं चटोरी हो जाती हैं कि वे स्वास्थ्य और धर्म के लिए संकट उत्पन्न कर देती हैं ।। आजकल अधिकांश मनुष्य इसी प्रकार इंद्रियों के गुलाम हैं ।। वे अपनी वासनाओं पर काबू नहीं रखते ।। बेकाबू हुई वासना अपने स्वामी को खा जाती है ।। |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
normal |
TOC |
1. इन्द्रिय नियन्त्रण का मूल मन्त्र-आत्मसंयम
2. प्रलोभनों से सदैव सावधान रहिए
3. वासनाओं को जीतने के लिए आध्यात्मिक चिन्तन
4. आवेशों से बचना आवश्यक है
5. मनोवृत्तियों का सदुपयोग
6. इन्द्रिय-संयम और अस्वाद व्रत
7. इन्द्रिय-संयम और ब्रह्मचर्य व्रत
8. संयम और सदाचार की महिमा
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TOC |
1 ईश्वर का विराट रुप
2 ब्रह्मज्ञान का प्रकाश
3 शक्ति का सदुपयोग
4 धन का सदुपयोग
5 आपत्तियों में धैर्य
6 नारी की महानता
7 गृहलक्ष्मी की प्रतिष्ठा
8 प्रकृति का अनुसरण
9 मानसिक संतुलन
10 सहयोग और सहिष्णुता
11 इंद्रिय संयम
12 परमार्थ और स्वार्थ का समन्वय
13 सर्वतोमुखी उन्नति
14 ईश्वरीय न्याय
15 विवेक की कसौटी
16 जीवन और मृत्यु
17 धर्म की सुदृढ़ धारणा
18 उदारता और दूरदर्शिता
19 स्वाध्याय और सत्संग
20 आत्म ज्ञान और आत्म कल्याण
21 पवित्र जीवन
22 प्राणघातक व्यसन
23 सावधानी और सुरक्षा
24 संतान के प्रति कर्तव्य
25 शिष्टाचार और सहयोग
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