Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Language |
Hindi |
PageLength |
24 |
Preface |
सहयोग और सहिष्णुता
गायत्री मंत्र का दसवाँ अक्षर "गो" अपने आस- पास वालों को सहयोग करने और सहिष्णु बनने की शिक्षा देता है ।
गोप्या: स्वयां मनोवृत्तीर्नासहिष्णुर्नरो भवेत् ।
स्थिति मज्यस्य वै वीक्ष्य तदनुरूप माचरेत ॥
अर्थात-"अपने मनोभावों को छिपाना नहीं चाहिए आत्मीयता का भाव रखना चाहिए । मनुष्य को असहिष्णु नहीं होना चाहिए । दूसरों की परिस्थिति का ध्यान रखना चाहिए।"
अपने मनोभाव और मनोवृत्ति को छिपाना ही छल कपट और पाप है । जैसा भाव भीतर है वैसा ही बाहर प्रकट कर दिया जाय तो वह पाप निवृत्ति का सबसे बड़ा राजमार्ग है । स्पष्ट और खरी कहने वाले,पेट में जैसा है वैसा ही मुँह से कह देने वाले लोग चाहे किसी को कितने ही बुरे लगें पर वे ईश्वर और आत्मा के आगे अपराधी नहीं ठहरते ।
जो आत्मा पर असत्य का आवरण चढ़ाते हैं वे एक प्रकार के आत्म हत्यारे हैं । "कोई व्यक्ति" यदि अधिक रहस्यवादी हो अधिक अपराधी कार्य करता हो तो भी उसके अपने कुछ ऐसे विश्वासी मित्र अवश्य होने चाहिए जिनके आगे अपने रहस्य प्रकट करके मन को हल्का कर लिया करे और उनकी सलाह से अपनी बुराइयों का निवारण कर सके ।
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Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
normal |
TOC |
1 ईश्वर का विराट रुप
2 ब्रह्मज्ञान का प्रकाश
3 शक्ति का सदुपयोग
4 धन का सदुपयोग
5 आपत्तियों में धैर्य
6 नारी की महानता
7 गृहलक्ष्मी की प्रतिष्ठा
8 प्रकृति का अनुसरण
9 मानसिक संतुलन
10 सहयोग और सहिष्णुता
11 इंद्रिय संयम
12 परमार्थ और स्वार्थ का समन्वय
13 सर्वतोमुखी उन्नति
14 ईश्वरीय न्याय
15 विवेक की कसौटी
16 जीवन और मृत्यु
17 धर्म की सुदृढ़ धारणा
18 उदारता और दूरदर्शिता
19 स्वाध्याय और सत्संग
20 आत्म ज्ञान और आत्म कल्याण
21 पवित्र जीवन
22 प्राणघातक व्यसन
23 सावधानी और सुरक्षा
24 संतान के प्रति कर्तव्य
25 शिष्टाचार और सहयोग
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TOC |
1. घृणा की हानिकारक मनोवृत्ति
2. दूसरी की अच्छाइयाँ देखा कीजिए
3. दुष्टों का नहीं दुष्टता का नाश करो
4. अनेक दोषों से भी संघर्ष कीजिए
5. सहिष्णुता और समझौते की भावना
6. मैत्री-भाव की वृद्धि करते रहिए
7. सहयोग और सामूहिकता की भावना
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