Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
normal |
TOC |
1. शिखा और यज्ञोपवीत भारतीय संस्कृति के प्रतीक
2. यज्ञोपवीत की आवश्यकता व उपयोगिता
3. शिखा का महत्व और प्रयोजन
4. चूडा़-कर्म संस्कार विवेचन
5. अन्य योनियों के संस्कार
6. गायत्री की मूर्तिमान प्रतिमा यज्ञोपवीत
7. साधकों के लिए यज्ञोपवीत आवश्यक है
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Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Language |
Hindi |
PageLength |
48 |
Preface |
यज्ञोपवीत और शिखा हिन्दू भारतीय संस्कृति के दो प्रतीक हैं । इन्हें भारतीय संस्कृति की जननी गायत्री की मूर्तिमान प्रतिमा तथा धर्मध्वजा भी कहा जा सकता है । यज्ञोपवीत को गायत्री की मूर्ति-एक प्रतिमा कहना चाहिए अन्य देवी-देवता तो ऐसे हैं जिनका प्रतिमा दर्शन कहीं भी और कभी भी किया जा सकता है पर गायत्री को भारतीय धर्मानुयायी के जीवन में इतना महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है कि उसकी प्रतिमा को हर घड़ी छाती से लगाये रखना स्वयं पर धारण किये रहना आवश्यक है । इसका अर्थ है कि गायत्री की ऋतम्भरा प्रज्ञा को अपने जीवन, कर्म, व्यक्तित्व की अधिष्ठात्री घोषित करना ।
यज्ञोपवीत का इसी कारण भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है कि यह द्विजत्व का प्रतीक है । द्विजत्व का अर्थ है-मनुष्यता के उत्तरदायित्व को स्वीकार करना । जो लोग मनुष्यता की जिम्मेदारियों को उठाने के लिए तैयार नहीं पाशविक वृत्तियों में इतने जकडे़ हुए हैं कि महान मानवता का भार बहन नहीं कर सकते उनको 'अनुपवीत" श्ब्द से शास्त्रकारों ने तिरस्कृत किया है और उनके लिए आदेश किया है कि वे आत्मोन्नति करने वाली मण्डली से अपने को पृथक बहिष्कृत निकृष्ट समझें । ऐसे लोगों को वेद-पाठ यज्ञ, तप आदि सत्साधनाओं का भी अनाधिकारी ठहराया गया है क्योंकि जिसका आधार ही मजबूत नहीं वह स्वयं खड़ा नहीं रह सकता जब वह स्वयं खड़ा नहीं हो सकता तो इन धार्मिक कृत्यों का भार बहन किस प्रकार कर सकेगा ?
भारतीय धर्मशास्त्रों की दृष्टि से मनुष्य का यह आवश्यक कर्तव्य है कि वह अनेक योनियों में भ्रमण करने के कारण संचित हुए पाशविक संस्कारों का परिमार्जन करके मनुष्योचित संस्कारों को धारण करे ।
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