Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Descriptoin |
1 उपासना के दो चरण जप और ध्यान
2 गायत्री कामधेनु है
3 गायत्री साधना क्यो ? और कैसे ?
4 गायत्री की गुप्त शक्तियाँ
5 गायत्री की शक्ति और सिद्धि
6 आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
7 गायत्री चालीसा
8 गायत्री से संकट निवारण
9 गायत्री की प्रचंड प्राण ऊर्जा
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Dimensions |
181mmX122mmX2mm |
Edition |
2013 |
Language |
Hindi |
PageLength |
48 |
Preface |
गायत्री का देवता सविता है । सविता का भौतिक स्वरूप रोशनी और गर्मी देने वाले अग्नि पिण्ड के रूप में परिलक्षित होता है पर उसकी सूक्ष्म सत्ता प्राण शक्ति से ओत-प्रोत है । वनस्पति, कृमि, कीट, पशु-पक्षी,जलचर, थलचर और नभचर वर्गों के समस्त प्राणी सविता देवताद्वारा निरन्तर प्रसारित प्राण-शक्ति के द्वारा ही जीवन धारण करते है । वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि इस जगती पर जो भी जीवन के चिह्न हैं, वे सूक्ष्म विकिरण शीलता के ही प्रतिफल है । सावित्री उस प्राणवान सविता देवताकी अधिष्ठात्री है । उसकी स्थिति को अनन्त प्राण-शक्ति के रूप में आँकाजाय तो कुछ अत्युक्ति न होगी ।
यह विश्वव्यापी प्राणशक्ति जहाँ जितनी अधिक मात्रा में एकत्रित होजाती है वहाँ उतनी ही सजीवता दिखाई देने लगती है । मनुष्य में इस प्राणतत्त्व का बाहुल्य ही उसे अन्य प्राणियों से अधिक विचारवान् बुद्धिमान्,गुणवान् सामर्थ्यवान् एवं सुसभ्य बना सका है । इस महान् शक्ति पुंज का प्रकृति प्रदत्त उपयोग करने तक ही सीमित रहा जाय तो केवल शरीर यात्राही संभव हो सकती है और अधिकांश नर पशुओं की तरह केवल सामान्य जीवन ही जिया जा सकता है, पर यदि और किसी प्रकार अधिक मात्रा मेंबढ़ाया जा सके तो गई गुजरी स्थिति से ऊँचे उठकर उन्नति के उच्चशिखरतक पहुँच सकना संभव हो सकता है । गायत्री महामन्त्र में वही प्रक्रिया या तत्त्वज्ञान सन्निहित है । जो विधिवत् उसका आश्रय ग्रहण करता है, उसे तत्काल अपनी समग्र जीवनी शक्ति का अभिवर्धन होता हुआ दृष्टिगोचर होता है । जितना ही प्रकाश बढ़ताहै, उतना ही अन्धकार दूर होता है, इसी प्रकार आन्तरिक समर्थता बढ़ने के साथ-साथ जीवन को दु:ख-दारिद्र का और घर व संसार को भवसागर के रूप में दिखाने वाले नाटकीय वातावरण से भी मुक्ति मिलती है । |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Size |
normal |
TOC |
नवरात्रि को देवत्व के स्वर्ग से धरती पर उतरने का विशेष पर्व माना जाता है। उस अवसर पर सुसंस्कारी आत्माएँ अपने भीतर समुद्र मंथन जैसी हलचलें उभरती देखते हैं। जो उन्हें सुनियोजित कर सकें वे वैसी ही रत्न राशि उपलब्ध करते हैं जैसी कि पौराणिक काल में उपलब्ध हुई मानी जाती हैं। इन दिनों परिष्कृत अन्तराल में ऐसी उमंगें भी उठती हैं जिनका अनुसरण सम्भव हो सके तो दैवी अनुग्रह पाने का ही नहीं देवोपम बनने का अवसर भी मिलता है यों ईश्वरीय अनुग्रह सत्पात्रों पर सदा ही बरसता है, पर ऐसे कुछ विशेष अवसर मिल सके। इन अवसरों को पावन पर्व कहते हैं। नवरात्रियों का पर्व मुहूर्तों में विशेष स्थान है। उस अवसर पर देव प्रकृति की आत्माएँ किसी अदृश्य प्रेरणा से प्रेरित होकर आत्म कल्याण एवं लोक मंगल क्रिया कलापों में अनायास ही रस लेने लगती हैं।
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TOC |
1. गायत्री उपासना से प्राणशक्ति का अभिवर्धन
2. गायत्री मन्त्र और प्राण विद्या
3. प्राणशक्ति एक जीवंत ऊर्जा
4. मानवी विद्युत प्राण
5. प्राणयोग-प्रचण्ड ऊर्जा का उत्पादन
6.आत्मबल का उपार्जन
7. प्राण शक्ति का उपार्जन-प्राणायाम से
8. प्राणाकर्षण प्राणायाम
9. नाडी़ शोधन प्राणायाम
10. लोम-विलोम,सूर्यवेधन प्राणायाम |