Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Descriptoin |
1 उपासना के दो चरण जप और ध्यान
2 गायत्री कामधेनु है
3 गायत्री साधना क्यो ? और कैसे ?
4 गायत्री की गुप्त शक्तियाँ
5 गायत्री की शक्ति और सिद्धि
6 आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
7 गायत्री चालीसा
8 गायत्री से संकट निवारण
9 गायत्री की प्रचंड प्राण ऊर्जा
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Dimensions |
182mmX121mmX2mm |
Edition |
2012 |
Language |
Hindi |
PageLength |
48 |
Preface |
संसार में जितना भी वैभव, उल्लास दिखाई पड़ता है या प्राप्तकिया जाता है वह शक्ति के मूल्य पर ही मिलता है । जिसमें जितनी क्षमता होती है वह उतना ही वैभव उपार्जित कर लेता है । जीवन में शक्ति का इतना महत्वपूर्ण स्थान है कि उसके बिना कोई आनन्द नहीं उठाया जा सकता । यहाँ तक कि अनायास उपलब्ध हुए भोगों को भीनही भोगा जा सकता । इंद्रियों में शक्ति रहने तक ही विषम भोगों का सुक्ष प्राप्त किय जा सकता है । ये किसी प्रकार अशक्त हो जाँय तो आकर्षक से आकर्षक भोग भी उपेक्षणीय और घृणास्पद लगते है । नाड़ी संस्थान की क्षमता क्षीण हो जाय तो शरीर का सामान्य क्रिया कलाप भी ठीक तरह नहीं चल पाता । मानसिक शक्ति घट जाने पर मनुष्य की गणना विक्षिप्तों और उपहासास्पदों में होने लगती है । धनशक्ति न रहनेपर दर-दर का भिखारी बनना पड़ता है । मित्रशक्ति न रहने पर एकाकी जीवन सर्वथा निरीह और निरर्थक होने लगता है । आत्मबल न होने पर प्रगति के पथ पर एक कदम भी यात्रा नहीं बढ़ती । जीवनो द्देश्य की पूर्ति आत्मबल से रहित व्यक्ति के लिए सर्वथा असंभवही है ।
अतएव शक्ति का संपादन भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने के लिए नितांत आवश्यक है । इसके साथ यह भी जान ही लेना चाहिए कि भौतिक जगत में पंचभूतों को प्रभावित करने तथा आध्यात्मिक, विचारात्मक, भावात्मक और संकल्पात्मक जितनी भी शक्तियाँ है उन सब का मूल उद्गम एवं असीम भण्डार वह महत्तत्व ही है जिसे गायत्री के नाम से संबोधित किया जाता है । भारतीय मनीषियों ने विभिन्न शक्तियों को देव नामों से संबोधित किया है । यह समस्त देव शक्तियाँ उस परम् शक्ति की किरणें ही हैं उनका अस्तित्व इस महत्व के अन्तर्गत ही है । |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Size |
normal |
TOC |
1. गायत्री की असंख्य शक्तियाँ
2. सफलता और सिद्धि के कुछ लक्षण
3. साधकों के स्वप्न निरर्थक नहीं जाते
4. गायत्री शक्ति का वैज्ञानिक आधार
5. सत्परिणाम अनायास नही विज्ञान सम्मत |
TOC |
नवरात्रि को देवत्व के स्वर्ग से धरती पर उतरने का विशेष पर्व माना जाता है। उस अवसर पर सुसंस्कारी आत्माएँ अपने भीतर समुद्र मंथन जैसी हलचलें उभरती देखते हैं। जो उन्हें सुनियोजित कर सकें वे वैसी ही रत्न राशि उपलब्ध करते हैं जैसी कि पौराणिक काल में उपलब्ध हुई मानी जाती हैं। इन दिनों परिष्कृत अन्तराल में ऐसी उमंगें भी उठती हैं जिनका अनुसरण सम्भव हो सके तो दैवी अनुग्रह पाने का ही नहीं देवोपम बनने का अवसर भी मिलता है यों ईश्वरीय अनुग्रह सत्पात्रों पर सदा ही बरसता है, पर ऐसे कुछ विशेष अवसर मिल सके। इन अवसरों को पावन पर्व कहते हैं। नवरात्रियों का पर्व मुहूर्तों में विशेष स्थान है। उस अवसर पर देव प्रकृति की आत्माएँ किसी अदृश्य प्रेरणा से प्रेरित होकर आत्म कल्याण एवं लोक मंगल क्रिया कलापों में अनायास ही रस लेने लगती हैं।
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