Preface |
अंतरिक्ष विज्ञान को नवसृजन के संदर्भ में उपादेयता
अंतरिक्ष विज्ञान, भू- विज्ञान से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है ।। जल और थल की तरह आकाश पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील मनुष्य यदि चाहे तो अपने पुरुषार्थ में एक कड़ी और जोड़ सकता है कि ग्रहों के सूक्ष्म प्रभाव से पृथ्वी के वातावरण तथा प्राणि परिवार को जो अनुकूलता- प्रतिकूलता सहन करनी पड़ती है उसके संबंध में उपयुक्त जानकारी प्राप्त बने और तदनुरूप उपाय खोज निकाले ।। प्राचीन काल से "ज्योतिष विज्ञान" के दो पक्ष हैं- यहीं की गतिविधियाँ तथा उनकी सूक्ष्म प्रतिक्रियाओं की जानकारी ।। यह जानकारी भली प्रकार उपलब्ध रहती थी फलता वे प्रतिकूलता" से बचने तथा अनुकूलता" से लाभ उठाने का मार्ग भी निकाल लेते थे ।। मनुष्य ने ज्ञान विज्ञान को अनेक शाखा- प्रशाखाओं में विकसित करके प्रगति के पथ पर बहुत आगे तक बढ़ चलने में सफलता पाई है ।। ग्रहविद्या का महत्त्व इन सबकी तुलना में कम नहीं वरन अधिक ही है ।। अन्य विज्ञान सामयिक, सीमित और संबद्ध लोगों को ही प्रभावित करते हैं, पर ग्रहों की सामर्थ्य भी प्रचंड है और क्षेत्र भी अत्यंत व्यापक ।। ऐसी दशा में उनके साथ जुड़े हुए संबंध- सूत्रों और आदान- प्रदानों के संबंध में भी हमारी जानकारी उपयुक्त स्तर की होनी चाहिए ।।
मौसम से लेकर राजनीतिक घटनाक्रमों तक को देखकर लोग अपनी योजनाओं का निर्धारण- परिवर्तन कस्ते रहते हैं ।। ग्रहों को स्थिति से उत्पन्न प्रभावों के संबंध में भी यह तथ्य कम महत्त्वपूर्ण नहीं है ।। अनुकूलता" का, संभावनाओं का यदि पूर्वाभास मिल सके तो निश्चय ही वैयक्तिक एवं सामूहिक सूख- कांति एवं प्रगति के ऐसे सूत्र मिल
सकते हैं जो उज्ज्वल भविष्य की संरचना में अत्यंत लाभदायक सिद्ध हो सकें ।। |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Size |
normal |
TOC |
1. अंतरिक्ष विज्ञान की नवसृजन के संदर्भ मे उपादेयता
2. ज्योतिर्विज्ञान एवं भौतिकी का समन्वय हो
3. परोक्ष की महत्ता एवं वातावरण संशोधन की अनिवार्यता
4. विपत्तियों का उद्भव अदृश्य जगत से
5. विभीषिकाओं का उद्गम केन्द्र
6. परोक्ष के संशोधन हेतु संगठित पुरुषार्थ
7. संस्कारवानों की खोज हेतु गायत्री तीर्थ के प्रयास
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Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |
Edition |
2011 |
Language |
Hindi |
PageLength |
96 |