Author |
PANDIT SHRIRAM SHARMA ACHARYA |
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Descriptoin |
1- Vedant Darshan
2- Mimansa Darshan
3-Sankhya Darshan
4-Yog Darshan
5-Vaisheshik Darshan
6-Nyay Darshan |
Dimensions |
246mm X183mm X 21mm |
Edition |
2010 |
Language |
Hindi |
Language |
Assamese |
PageLength |
400 |
Preface |
मानव जीवन का लक्ष्य एवं सांसारिक स्थिति की विवेचना अनुभवों के आधार पर करनेवाला न्यायदर्शन, वस्तुवाद का पोषक है । इसके अनुसार जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष है, जिसकेद्वारा दुःखों की पूर्णत: निवृत्ति हो जाती है । न्यायके मतानुसार जीवात्मा कर्त्ता एवं भोक्ता होने के साथ-साथ, ज्ञानादि से सम्पन्न नित्य तत्त्व है । यह जहाँ वस्तुवाद को मान्यता देता है, वहीं यथार्थ वादका भी पूरी तरह अनुगमन करता है । मानव जीवन में सुखों की प्राप्ति का उतना अधिक महत्त्व नहींहै, जितना कि दुःखों की निवृत्ति का । ज्ञानवान् होया अज्ञानी, हर छोटा-बड़ा व्यक्ति सदैव सुख प्राप्तिका प्रयत्न करता ही रहता है । सभी चाहते हैं कि उन्हें सदा सुख ही मिले, कभी दुःखों का सामनान करना पड़े, उनकी समस्त अभिलाषायें पूर्णहोती रहें; परन्तु ऐसा होता नहीं । अपने आप को पूर्णत: सुखी कदाचित् ही कोई अनुभव करता हो । जिनको भरपेट भोजन, तन ढकने के लिए पर्याप्त वस्त्र तथा रहने के लिए मकान भी ठीक से उपलब्ध नहीं तथा जो दिन भर रोजी-रोटी के लिए मारे-मारे फिरते हैं, उनकी कौन कहे; जिनके पास पर्याप्त धन-साधन, श्रेय-सम्मान सब कुछ है, वेभी अपने दुःखों का रोना रोते देखे जाते हैं । आखिरऐसा क्यों है? क्या कारण है कि मनुष्य चाहता तो सुख है; किन्तु मिलता उसे दुःख है । सुख-सन्तोषके लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहते हुए भी वह अनेकानेक दुःखों एवं अभावों को प्राप्त होता रहताहै । आज की वैज्ञानिक समुन्नति से, पहले की अपेक्षा कई गुना सुख के साधनों में बढोत्तरी होने |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Size |
big |
TOC |
1 मीमांसा दर्शन
2 न्याय एवं वैशेषिक दर्शन
3 सांख्य एवं योगदर्शन
4 वेदांत दर्शन |
TOC |
1 मीमांसा दर्शन
2 न्याय एवं वैशेषिक दर्शन
3 सांख्य एवं योगदर्शन
4 वेदांत दर्शन |