SANKHY DARSHAN
Price: ₹ 150/-

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Product Detail

Author Pandit Shriram Sharma Aacharya
Author PANDIT SHRIRAM SHARMA ACHARYA
Descriptoin 1- Vedant Darshan 2- Mimansa Darshan 3-Sankhya Darshan 4-Yog Darshan 5-Vaisheshik Darshan 6-Nyay Darshan
Dimensions 250mm X182mm X 15mm
Edition 2010
Language Assamese
Language Hindi
PageLength 304
Preface दर्शन शब्द का अर्थ भारतीय मनीषियों के उर्वर मस्तिष्क से जिस कर्म, ज्ञान और भक्तिमय त्रिपथगा का प्रवाह उद्भूत हुआ, उसने दूर-दूर के मानवों के आध्यात्मिक कल्मष को धोकर उन्हें पवित्र, नित्य-शुद्ध-बुद्ध और सदा स्वच्छ बनाकर मानवता के विकास में योगदान दिया है । इसी पतित पावनी धारा को लोग दर्शन के नाम से पुकारते हैं । अन्वेषकों का विचार है कि इस शब्द का वर्तमान अर्थ में सबसे पहला प्रयोग वैशेषिक दर्शन में हुआ । दर्शन शब्द का अर्थ- दर्शन शब्द पाणिनीय व्याकरणा नुसार दृशिर प्रेक्षणे धातु से ल्युट प्रत्यय करने से निष्पन्न होता है । अतएव दर्शन शब्द काअर्थ दृष्टि या देखना, जिसके द्वारा देखा जाय या जिसमें देखा जाय होगा । दर्शन शब्द का शब्दार्थ केवल देखना या सामान्य देखना ही नहीं है इसीलिए पाणिनि ने धात्वर्थ में प्रेक्षण शब्द का प्रयोग किया है । प्रकृष्ट ईक्षण, जिसमें अन्तश्चक्षुओं द्वारा देखना या मनन करके सोपपत्तिक निष्कर्ष निकालना ही दर्शन का अभिधेय है । इस प्रकार के प्रकृष्ट ईक्षण के साधन और फल दोनों का नामदर्शन है । जहाँ पर इन सिद्धान्तों का संकलन हो,उन ग्रन्थों का भी नाम दर्शन ही होगा,जैसे-दर्शन, वैशेषिक दर्शन, मीमांसा दर्शन आदि-आदि । दर्शन ग्रन्थों को दर्शन शास्त्र भी कहते हैं । यह शास्त्र शब्द शासु अनुशिष्टौ से निष्पन्न होनेके कारण दर्शन का अनुशासन या उपदेश करनेके कारण ही दर्शन-शास्त्र कहलाने का अधिकारी है । दर्शन अर्थात् साक्षात्कृत धर्मा ऋषियों के अन्तश्चक्षु या दिव्य चक्षुओं द्वारा देखे गये तत्त्वों के उपदेशक ग्रन्थों का नाम ही दर्शन शास्त्र है । दर्शन का प्रतिपाद्य विषय - दर्शनों का उपदेश वैयक्तिक जीवन के सम्मार्जन और परिष्करण के लिए ही अधिक उपयोगी है ।
Publication Yug Nirman Yogana, Mathura
Publisher Yug Nirman Yogana, Mathura
Size big
TOC 1 मीमांसा दर्शन 2 न्याय एवं वैशेषिक दर्शन 3 सांख्य एवं योगदर्शन 4 वेदांत दर्शन
TOC 1 मीमांसा दर्शन 2 न्याय एवं वैशेषिक दर्शन 3 सांख्य एवं योगदर्शन 4 वेदांत दर्शन
TOC १. भूमिका ( सांख्य दर्शन) २.प्रथम अध्याय ३. द्वितीय अध्याय ४.तृतीय अध्याय ५. चतुर्थ अध्याय ६. पंचम अध्याय ७. षष्ठ अध्याय ८. भूमिका ( योगदर्शन) ९. समाधि पाद - १ १० साधन पाद - २ ११ विभूति पाद - ३ १२ कैवल्य पाद - ४ परिशिष्ट- क शब्दानुक्रमणिका ( सांख्यदर्शन) ख सूत्रानुक्रमणिका ( सांख्यदर्शन) ग शब्दानुक्रमणिका ( योगदर्शन) घ. सूत्रानुक्रमणिका ( योगदर्शन)



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