Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Author |
PANDIT SHRIRAM SHARMA ACHARYA |
Descriptoin |
1- Vedant Darshan
2- Mimansa Darshan
3-Sankhya Darshan
4-Yog Darshan
5-Vaisheshik Darshan
6-Nyay Darshan |
Dimensions |
250mm X182mm X 15mm |
Edition |
2010 |
Language |
Assamese |
Language |
Hindi |
PageLength |
304 |
Preface |
दर्शन शब्द का अर्थ भारतीय मनीषियों के उर्वर मस्तिष्क से जिस कर्म, ज्ञान और भक्तिमय त्रिपथगा का प्रवाह उद्भूत हुआ, उसने दूर-दूर के मानवों के आध्यात्मिक कल्मष को धोकर उन्हें पवित्र, नित्य-शुद्ध-बुद्ध और सदा स्वच्छ बनाकर मानवता के विकास में योगदान दिया है । इसी पतित पावनी धारा को लोग दर्शन के नाम से पुकारते हैं । अन्वेषकों का विचार है कि इस शब्द का वर्तमान अर्थ में सबसे पहला प्रयोग वैशेषिक दर्शन में हुआ । दर्शन शब्द का अर्थ- दर्शन शब्द पाणिनीय व्याकरणा नुसार दृशिर प्रेक्षणे धातु से ल्युट प्रत्यय करने से निष्पन्न होता है । अतएव दर्शन शब्द काअर्थ दृष्टि या देखना, जिसके द्वारा देखा जाय या जिसमें देखा जाय होगा । दर्शन शब्द का शब्दार्थ केवल देखना या सामान्य देखना ही नहीं है इसीलिए पाणिनि ने धात्वर्थ में प्रेक्षण शब्द का प्रयोग किया है । प्रकृष्ट ईक्षण, जिसमें अन्तश्चक्षुओं द्वारा देखना या मनन करके सोपपत्तिक निष्कर्ष निकालना ही दर्शन का अभिधेय है । इस प्रकार के प्रकृष्ट ईक्षण के साधन और फल दोनों का नामदर्शन है । जहाँ पर इन सिद्धान्तों का संकलन हो,उन ग्रन्थों का भी नाम दर्शन ही होगा,जैसे-दर्शन, वैशेषिक दर्शन, मीमांसा दर्शन आदि-आदि । दर्शन ग्रन्थों को दर्शन शास्त्र भी कहते हैं । यह शास्त्र शब्द शासु अनुशिष्टौ से निष्पन्न होनेके कारण दर्शन का अनुशासन या उपदेश करनेके कारण ही दर्शन-शास्त्र कहलाने का अधिकारी है । दर्शन अर्थात् साक्षात्कृत धर्मा ऋषियों के अन्तश्चक्षु या दिव्य चक्षुओं द्वारा देखे गये तत्त्वों के उपदेशक ग्रन्थों का नाम ही दर्शन शास्त्र है । दर्शन का प्रतिपाद्य विषय - दर्शनों का उपदेश वैयक्तिक जीवन के सम्मार्जन और परिष्करण के लिए ही अधिक उपयोगी है । |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Size |
big |
TOC |
1 मीमांसा दर्शन
2 न्याय एवं वैशेषिक दर्शन
3 सांख्य एवं योगदर्शन
4 वेदांत दर्शन |
TOC |
1 मीमांसा दर्शन
2 न्याय एवं वैशेषिक दर्शन
3 सांख्य एवं योगदर्शन
4 वेदांत दर्शन |
TOC |
१. भूमिका ( सांख्य दर्शन)
२.प्रथम अध्याय
३. द्वितीय अध्याय
४.तृतीय अध्याय
५. चतुर्थ अध्याय
६. पंचम अध्याय
७. षष्ठ अध्याय
८. भूमिका ( योगदर्शन)
९. समाधि पाद - १
१० साधन पाद - २
११ विभूति पाद - ३
१२ कैवल्य पाद - ४
परिशिष्ट-
क शब्दानुक्रमणिका ( सांख्यदर्शन)
ख सूत्रानुक्रमणिका ( सांख्यदर्शन)
ग शब्दानुक्रमणिका ( योगदर्शन)
घ. सूत्रानुक्रमणिका ( योगदर्शन) |