Preface
मनुष्य इस सृष्टि का सर्वोच्च प्राणी है ।। उसे असाधारण बुद्धि वैभव देकर परमात्मा ने इस संसार में भेजा है ।। परमात्मा का युवराज मानव प्राणी निस्संदेह महान है, उसकी महानता सर्वोपरि है ।। इतना प्रतिष्ठित पद मनुष्य को अपने जन्म सिद्ध अधिकार की तरह प्राप्त हुआ है ।।
पर हम देखते हैं कि बहुत कम लोग उस प्रतिष्ठा की रक्षा कर पाते हैं ।। अधिकांश व्यक्ति ऐसे हैं जो न तो अपनी प्रतिष्ठा को भली प्रकार समझते हैं और न उनकी रक्षा कर पाते हैं ।। धन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सौंदर्य, चतुरता जैसी भौतिक वस्तुओं के अभाव में कितने ही मनुष्य अपने को दीन, हीन, नीच एवं प्रतिष्ठा के अनधिकारी समझने लगते हैं ।। यह भारी भूल है ।। भौतिक वस्तुओं का भाव, अभाव कोई महत्त्वपूर्ण बात नहीं है ।।
आत्मा के जो आध्यात्मिक गुण हैं, वही वास्तव में प्रतिष्ठा की वस्तु हैं ।। नैतिकता, सात्विकता, दृढ़ता, ईमानदारी प्रभूति मनुष्यता के प्रधान गुणों की रक्षा करके अपने व्यक्तित्व को खरा सोना साबित करना यही प्रतिष्ठा युक्त जीवन है ।। इसी मार्ग पर चलने से अपनी और दूसरों की दृष्टि में हमारा सम्मान बढ़ता है ।। इस सम्मान को प्राप्त करने का मार्ग इस पुस्तक में दिखाया गया है ।।
Table of content
1. आत्मसम्मान प्राप्त कीजिये, इज्जतदार जीवन बिताइये
2. ईमानदार, खरे और भले मानस बनिये
3. आबरु की रक्षा के लिए वीरोचित कार्य का अवलम्बन कीजिये
4. बाहरी रहन सहन भी आत्म सम्मान के उपयुक्त बनाइये
5. दुष्टों से प्रेम, दुष्टता से युद्ध
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
40 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |