Preface
किसी भी मनुष्य अथवा समाज की उन्नति का लक्षण है- सुख, शांति और संपन्नता ।। ये तीनों बातें एक - दूसरे पर उसी प्रकार निर्भर हैं जिस प्रकार किरणें सूर्य पर और सूर्य किरणों पर निर्भर है ।। जिस प्रकार किरणों के अभाव में सूर्य का अस्तित्व नहीं और सूर्य के अभाव में किरणों का अस्तित्व नहीं, उसी प्रकार बिना सुख- शांति के संपन्नता की संभावना नहीं और बिना संपन्नता के सुख- शांति का अभाव रहता है ।।
यदि गंभीर दृष्टि से देखा जाए तो पता चलेगा कि आरामदेह जीवन की सुविधाएँ सुख- शांति का कारण नहीं हैं बल्कि निर्विघ्न तथा निर्द्वन्द्व जीवन प्रवाह की स्निग्ध गति ही सुख- शांति का हेतु है ।। जिसका जीवन एक स्निग्ध तथा स्वाभाविक गति से ही बहता चला जा रहा है, सुख- शांति उसी को प्राप्त होती है ।। इसके विपरीत जो अस्वाभाविक एवं उद्वेगपूर्ण जीवनयापन करता है, वह दुखी तथा अशांत रहता है ।। विविध प्रकार के कष्ट और क्लेश उसे घेरे रहते हैं ।। ऐसा व्यक्ति एक क्षण को भी सुख- चैन के लिए कलपता रहता है ।। कभी उसे शारीरिक व्याधियाँ त्रस्त करती हैं तो कभी वह मानसिक यातनाओं से पीड़ित होता है ।।
Table of content
1. नैतिक नियम और उनकी अनिवार्य आवश्यकता
2. अनुशासन का उल्लंघन न करें
3. कर्त्तव्य-धर्म की मर्यादा मत टोडि़ए
4. अनुशासन में रहा कीजिए
5. नैतिक मर्यादाओं का उल्लंघन न करें
6. राष्ट्रीय उन्नति का प्रधान स्तम्भ-नागरिकता
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |