Preface
मानव जीवन में सुख की वृद्धि करने के उपायों में स्वाध्याय एक प्रमुख उपाय है ।। स्वाध्याय से ज्ञान की वृद्धि होती है; मन में महानता, आचरण में पवित्रता तथा आत्मा में प्रकाश आता है ।।
स्वाध्याय के अभाव में पढ़ी हुई विद्या भी विस्मृत हो जाती है, तब नूतन ज्ञान प्राप्त करने का प्रश्न ही नहीं उठता! कहीं भी और कभी भी देखा जा सकता है कि कक्षा पास कर लेने और उपाधि पा लेने के बाद जो विद्यार्थी, वकील अथवा डॉक्टर आदि अपना स्वाध्याय बंद कर देते हैं, वे आगे चलकर सफल नहीं हो पाते ।। संसार की विचारधारा को मोड़ देने वाले लेखक अथवा पत्रकार प्रतिदिन अनेक घंटों स्वाध्याय में लगाते हैं ।। जो स्वाध्यायशील रहता है उसका ज्ञान आधुनिक और विद्या जाग्रत रहती है ।। प्रतिदिन कुछ न कुछ पढ़ते रहने वाले अपने ज्ञान- कोष में बूँद- बूँद इकट्ठा करके उसे अक्षय बना लिया करते हैं ।।
जीवन को सफल, उच्च एवं पवित्र बनाने के लिए स्वाध्याय की बड़ी आवश्यकता है ।। किसी भी ऐसे व्यक्ति का जीवन क्यों न देख लिया जाए जिसने उच्चता के सोपानों पर चरण रखा है ।। उसके जीवन में स्वाध्याय को विशेष स्थान मिला होगा ।।
Table of content
1. सद्ग्रंथों का स्वाध्याय- एक साधना
2. स्वाध्याय-आत्मा का भोजन
3. उत्तम पुस्तकें जाग्रत देवता हैं
4. सत्साहित्य से शक्ति और समुन्नति
5. सद्ज्ञान का संचय एवं प्रसार
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |