Preface
अज्ञान एक प्रकार का अंधकार है ।। अंधकार में पास रखी हुई वस्तु का स्वरूप भी ठीक से दिखाई नहीं पड़ता, कुछ का कुछ प्रतीत होता है ।। कई बार तो जो चीज सामने रखी है, वह भी ढूँढ़नी पड़ती है फिर भी मिलती नहीं ।। अंधकार ऐसा ही दोषपूर्ण है ।। इसी से उसकी निंदा की जाती है ।। अँधेरा भय का कारण भी है ।। रात को सूने घर में डर लगता है ।। अकेले कहीं जंगल में सुनसान में जाना पड़े तो भी भय प्रतीत होता है, यद्यपि डर का कोई कारण नहीं होता ।। दिन में वहाँ रहें या गुजरें तो कुछ भी भय प्रतीत नहीं होता, पर रात डरावनी मालूम पड़ती है ।। मन में हर क्षण ऐसी आशंकाएँ उठती रहती हैं कि कहीं- कोई खतरा न हो ।। चोर का, साँप का, भूत का, और न जाने किस- किस का डर मन में उठता है और कहीं कोई पत्ता खड़के चूहा कूदे तो बिलकुल यही लगता है कि कोई भूत उछला ।। कभी- कभी छोटे- छोटे निर्दोष पेड- पौधे, रीछ, व्याघ्र, चोर, भूत- पलीत जैसे लगते हैं और कई बार तो उनमें आँख, दाँत, हाथ बढ़ते हुए तथा हरकत करते हुए दिखाई देते हैं ।। कहते हैं " शंका डायन, मनसा भूत ।। " आशंका डायन की बराबर भयानक रूप धारण करती है और मन में उत्पन्न हुई आशंका भूत का डरावना रूप बनाकर खाने- पकड़ने को दौड़ती है ।।
Table of content
1. अन्धकार और भय का जोड़ा
2. ज्ञानप्राप्ति का पुरुषार्थ
3. हर बात बारीकी से सोचें
4. अन्धकार की विरासत
5. हम और हमारे पूर्वज
6. उल्टे विचार उल्टे परिणाम
7. अतीत पर दृष्टिपात
8. दोहरा व्यवहार दोहरा प्रयोजन
Author |
Pt Shriram Sharma Acharya |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
24 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |