Preface
सत् और असत् अथवा दैवी और आसुरी, मानव- जीवन के दो पहलू हैं ।। इनमें से मनुष्य असत् अथवा आसुरी पक्ष की तरफ जल्दी झुकता है, क्योंकि उसमें वह भोग- विलास, भौतिक सुख और मनोविनोद की संभावना विशेष रूप से देखता है ।। दूसरी तरफ दैवी पक्ष में जाने पर त्याग, तपस्या, सेवा, परमार्थ जैसे आरंभ में कठिन जान पड़ने वाले कार्यक्रम अपनाने पड़ते हैं ।। इसलिए अधिकांश व्यक्ति आरंभ में आसुरी पक्ष की तरफ ही आकर्षित होते हैं ।। उनको इस बात का ध्यान नहीं रहता कि यह तो चार दिन की चाँदनी है, इसका अंतिम परिणाम कभी शुभ नहीं हो सकता ।।
इस संसार में मनुष्य आत्मोत्कर्ष के मार्ग पर यथाशक्ति प्रगति करने के लिए ही उत्पन्न हुआ है ।। यह उद्देश्य तभी सिद्ध हो सकता है, जब वह प्रवृत्तियों को त्यागकर दैवी को ग्रहण करने की चेष्टा ।। यह कार्य एक दिन में नहीं जाता, वरन जब आजन्म उसका ध्यान रखा जाता है और निम्नकोटि की स्वार्थपरता को निरंतर दबाते हुए परमार्थ को ही सर्वोच्च लक्ष्य बना लिया जाता है, तभी दैवी भावनाएँ हृदय में उदित होती हैं ।। इसके लिए सभी दुर्गुणों को त्यागकर सच्चरित्रता, नैतिकता और परहित- कामना जैसे अनेक गुणों को अपनाना पड़ता है ।।
इस पुस्तक में मानव- अंतःकरण में होने वाले इसी देवासुर- संग्राम पर प्रकाश डाला है और समझाया गया है कि किस प्रकार के व्यवहार और आचरण को अपनाकर, इन परिस्थितियों से मनुष्य ऊँचा उठ सकता है ।। इस संबंध में स्पष्ट कर दिया गया है कि जब तक मनुष्य अपने दोष- दुर्गुणों की तरफ से सचेत होकर अपने भीतर देवत्व का उदय न करेगा, तब तक वह अपने जीवन- लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता ।।
Table of content
1. हमारा आंतरिक महाभारत
2. ईश्वरोपासना के सत्परिणाम
3. हम दो में से एक मार्ग चुन लें
4. श्रेय अथवा प्रेय
5. प्रगति का मूल मंत्र-आत्मोत्कर्ष
6. स्वार्थ को नहीं परमार्थ को साधा जाए
7. विश्व-मानव की अखंड अंतरात्मा
8. हम भी सत्य को ही क्यों न अपनाएँ
9. दृष्टिकोण का परिवर्तन
10. सद्गुण भी हमारे ध्यान में रहें
11. कुसंग से आत्मरक्षा की आवश्यकता
12. प्रशंसा और प्रोत्साहन का महत्त्व
13. आलस्य में समय न गवाएँ
14. श्रम से ही जीवन निखरता है
15. कर्तव्य-धर्म की मर्यादा तोडिये मत
16. सफलता ही नहीं-असफलता भी
17. महत्त्वाकांक्षाएँ और असंतोष
18. ऐषणाएँ नहीं महानता अभीष्ट
Author |
Pt Shriram Sharma Acharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
160 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |