Preface
नारी की गरिमा समझें और उसे सम्मान दें
भारतीय संस्कृति में स्त्रियों के नाम के साथ देवी लिखने और संबोधित करने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है । भगवती देवी, लक्ष्मी देवी, सरस्वती देवी, कमला देवी आदि नाम इस बात के प्रतीक हैं कि हिंदू विचारधारा में नारी को देव - श्रेणी की सत्ता के रूप में स्वीकार किया गया है ।
ऐसा अनायास ही नहीं हुआ । इस प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए नारियों ने चिरकाल से गहन तपश्चर्या की है ।पुण्या कापि पुरंध्री, नारि कुलैक शिखामणिः अर्थात उसने अपनी संपूर्ण शक्तियों के चरम विकास द्वारा ही यह गौरव प्राप्त किया ।
लोक - कल्याण की विधायिका, पथ- प्रदर्शिका और संरक्षिका शक्ति का नाम ही देवी है । अपने इस रूप में भारतीय नारी आज भी उन प्राचीन गुणों को धारण किए हुए है, जिनके द्वारा अतीतकाल में उसने समाज के समग्र विकास में योगदान दिया था । यद्यपि वह तेजस्विता आज धूमिल पड़ गई है, तथापि यदि उस पर पड़े मल- आवरण के विक्षेप को हटा दिया जाए तो नारी सत्ता अपनी पूर्ण महत्ता को फिर से ज्यों की त्यों चरितार्थ कर सकती है ।
ब्रह्मपुराण में व्यास- जाबालि संवाद के रूप में एक आख्यायिका आती है । व्यास जी जाबालि को बताते हैं - पितुरप्यधिका माता गर्भधारण पोषणात् । अतोहि त्रिषु लोकेषु नास्ति मातृ समो गुरु: । अर्थात हे जाबालि! पुत्र के लिए माता का स्थान पिता से बढ़कर है, क्योंकि वही उसे गर्भ में धारण करती है, अपने रस, रक्त और शरीर से ही नहीं भावनाओं और संस्कारों से भी पालन- पोषण करती है ।।
Table of content
1.नारी की गरिमा समझें और उसे सम्मान दें
2.विकास की समान अधिकारिणी नारी
3.भारतीय संस्कृति में नारी की गरिमा
4.नारी ब्रह्मवर्चस की समान अधिकारिणी
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Yug Nirman Yojna Trust, Mathura |
Page Length |
48 |
Dimensions |
12 X 18 cm |