Preface
मस्तिष्क मानवी सत्ता का ध्रुवकेंद्र है ।। उसकी शक्ति असीम है ।। इस शक्ति का सही उपयोग कर सकना यदि संभव हो सके, तो मनुष्य अभीष्ट प्रगति- पथ पर बढ़ता ही चला जाता है ।। मस्तिष्क के उत्पादन इतने चमत्कारी हैं कि इनके सहारे भौतिक ऋद्धियों में से बहुत कुछ उपलब्ध हो सकता है ।। मस्तिष्क जितना शक्तिशाली है, उतना ही कोमल भी है ।। उसकी सुरक्षा और सक्रियता बनाए रहने के लिए यह आवश्यक है कि अनावश्यक गरमी से बचाए रखा जाए ।। पेंसिलिन आदि कुछ औषधियाँ ऐसी हैं, जिन्हें कैमिस्टों के यहाँ ठंढे वातावरण में, रेफ्रीजरेटरों में सँभालकर रखा जाता है ।। गरमी लगने पर वे बहुत जल्दी खराब हो जाती हैं ।। औषधियाँ ही क्यों अन्य सीले खाद्य पदार्थ कच्ची या पक्की स्थिति में गरम वातावरण में जल्दी बिगड़ने लगते हैं ।। उन्हें देर तक सही स्थिति में रखना हो तो ठंढक की स्थिति में रखना पड़ता है ।। मस्तिष्क की सुरक्षा के मोटे नियमों में एक यह भी है कि उस पर गरम पानी न डाला जाए गरम धूप से बचाया जाए ।। बाल रखाने और टोपी पहनने का रिवाज इसी प्रयोजन के लिए चला है कि उस बहुमूल्य भंडार को यथासंभव गरमी से बचाकर रखा जाए ।। सिर में ठंढी प्रकृति के तेल या धोने के पदार्थ ही काम में लाए जाते हैं ।। इससे स्पष्ट है कि मस्तिष्क को अनावश्यक उष्णता से बचाए रहने की सुरक्षात्मक प्रक्रिया को बहुत समय से समझा और अपनाया जाता रहा है ।।
Table of content
१. परिस्थितियों को संतुलन पर हावी न होने दें
२. न खीजें-न उद्विग्न हों
३. हमारा सबसे निकटवर्ती शत्रु क्रोध
४. अंसतुलन के दुष्परिणाम एवं निराकरण के उपाय
५. विचार संस्थान की सुव्यवस्था अत्यंत अनिवार्य
६. हिम्मत बटोरें- आत्महीनता छोडें
७. विवेक से जुड़ी भावुकता ही श्रेयस्कर
८. आस्था तंत्र की विकृति भी मानस रोगों के लिए उत्तरदायी
९. तनाव के कारण और उसके उपचार
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
64 |
Dimensions |
182mmX121mmX3mm |