Preface
हमारे आत्मीय बंधुओं ! यह पुस्तक परमपूज्य पं० श्रीराम शर्मा आचार्य के विचारों को संकलित कर प्रकाशित की जा रही है ।। परमपूज्य गुरुदेव ने आम आदमी को आत्म मूर्च्छना से ग्रसित बताया है और यह कहा है कि वह चाहे कितना ही पढ़ा- लिखा क्यों न हो? यदि उसे सही ढंग से सोचना, समाज का नियोजन करना, प्रतिकूलताओं से मोर्चा लेना, समाज के अन्य घटकों के साथ रहना नहीं आता है तो फिर उसका पढ़ा- लिखा होना न केवल बेकार है, बल्कि उस पर लगाया हुआ धन भी राष्ट्रीय अपव्यय के समान है ।। वे कहते हैं कि ऐसे तथाकथित शिक्षितों के लिए अब संजीवनी विद्या की आवश्यकता पड़ेगी, जो उन्हें मूर्च्छना से उभार सके, समाज परायण बना सके ।। वे लिखते हैं कि गुण, कर्म व स्वभाव का आमूल- चूल परिष्कार ही उज्ज्वल भविष्य की संभावना की भवितव्यता को पूरा करेगा ।। अध्यात्म प्रधान यह संजीवनी विद्या कौन देगा? किस प्रकार उसका विस्तार होगा? और इतने विराट परिवार में युग अध्यापक कहाँ से आएँगे? यही खोज इन दिनों महाकाल की प्रेरणा से इस पुस्तक द्वारा शिक्षकों का आह्वान करके की जा रही है ।। शिक्षकों को उनकी गरिमा एवं गौरव का बोध कराया जा रहा है ।। आत्म विस्मृति त्यागने को आह्वान किया जा रहा है ।। शिक्षक के दायित्व का बोध कराया जा रहा है ।। आशा है युगऋषि की लेखनी इस युग के आचार्यों की मूर्च्छना को जाग्रति में बदलेगी और शिक्षक वर्ग अपने सम्मान की रक्षा हेतु अपने दायित्व को निभाने में तत्पर होगा ।।
Table of content
1. गुरु की महिमा, महत्ता एवं जिम्मेदारी
2. अध्यापक अपनी भूमिका समझें
3. अध्यापक समुदाय अपनी गरिमा व दायित्व समझें
4. शिक्षकों का महान उत्तरदायित्व
5. अध्यापकों की योग्यता व जिम्मेदारी
6. अध्यापक अपने आदर्श से मार्गदर्शन करें
7. देश का चिंतन और चरित्र बदल सकने में समर्थ अध्यापक
8. प्रशिक्षण के उपयुक्त सही वातावरण
9. छात्रों का निर्माण अध्यापक करें
10. आत्मीय अनुरोध
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Yug Nirman Yojna Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 X 18 cm |