Preface
इस युग की महानतम आवश्यकता
मानवीय महत्ता का मूल स्रोत उसकी विचारशीलता ही है ।। जीव विज्ञान की दृष्टि में अति सामान्य स्तर के प्राणी मनुष्य को सृष्टि का मुकुटमणि बना देने का श्रेय उसकी इस विचारणा को ही है ।। सतयुग जैसे श्रेष्ठ समय जब कभी आते हैं और इस धरती पर स्वर्गीय वातावरण का मंगलमय दर्शन होता है तब उसके मूल में उत्कृष्ट स्तर की विचारधारा का ही चमत्कार छिपा रहता है ।। यह स्तर जैसे गिरता जाता है, वैसे- वैसे व्यक्ति का व्यक्तित्व और समाज का वर्चस्व भी गिरता चला जाता है ।। निकृष्ट विचारधारा मनुष्यों को रोग, शोक, दुःख, दारिद्र, क्लेश- कलह के गर्त में ढकेलती चली जाती है और स्थिति यहाँ तक गिर जाती है कि मनुष्यों को नर पशु या नर- पिशाचों के रूप में तथा समाज को नारकीय युग में युद्धों, महामारियों, अपराधों, अभावों, द्वेष, दुर्भावों, संघर्षों एवं असंतोष- उद्वेगों के बीच गई- गुजरी परिस्थितियों में समय गुजारते देखा जाता है ।।
विचारणा की उच्च स्थिति बनाये रखने के लिए अध्यात्म और धर्म का विशालकाय ढाँचा खड़ा किया गया है ।। स्वाध्याय और सत्संग की इतनी अधिक महिमा और व्यवस्था का जो महत्व प्रतिपादित किया गया है उसके पीछे भी यही तथ्य सन्निहित है कि मनुष्य की विचार पद्धति आदर्शवादिता और उत्कृष्टता के स्तर पर बनी रहे, नीचे न गिरने पाये ।।
Table of content
1.युग की महानतम आवश्यकता
2.झोला पुस्तकालय एक अनोखा प्रयोग
3.झोला पुस्तकालय और उसका कार्यक्षेत्र
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |