Preface
काव्य में लालित्य होता है ।। एक अनोखी मिठास होती है ।। जो बात गद्य के बड़े- बड़े ग्रंथ नहीं कह पाते, वह पद्य की दो पंक्तियों कह जाती हैं ।। इतनी गहराई तक प्रवेश करती हैं कि सीधे अंतःकरण को छूती हैं ।। यही कारण है कि साहित्य में भाव- संवेदनाएँ संप्रेषित करने हेतु सदा काव्य का प्रयोग होता है ।। वेदव्यास भी ज्ञान का संचार जो उन्हें योगेश्वर से मिला गीता के श्लोकों के द्वारा देववाणी में देते हैं और ठेठ देशी अवधी भाषा में श्रीराम का चरित्र तुलसीदास जी देते हुए नीति का सारा संदेश दे जाते है ।। महावीर प्रसाद गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला", मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी आदि अपनी इसी गहराई तक संदेश देने की कला- विधा के द्वारा जन- जन में सराहे गए ।।
परमपूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीराम शर्मा जी (११११ - २०११) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में इससे श्रेष्ठ कि उन्हीं के ऋषितुल्य मार्गदर्शन में, चरणों में बैठकर जिन कवियों ने काव्य रचा, कविता लिखना सीखा, अपनी मंजाई की, उनके गीतों के वाड्मय के खंड प्रस्तुत किए जाएँ ।। "बिन गुरु ज्ञान नहीं, नहीं रे" जो भी कुछ ज्ञान काव्य की इन पंक्तियों में प्रस्कुटित हुआ है, उसका मूल प्राण है, आधार है- परमपूज्य गुरुदेव का संरक्षण व मार्गदर्शन ।।
"गीत-मंजूष" ऐसे चार सौ अट्ठाइस गीतों का संग्रह है जिनके द्वारा नवयुग के अवतरण के लिए उत्तरदायी मानवों को आत्मबोध कराकर उन्हें जाग्रत किया गया है । इसी आशय से इसके गीतों को "उद्बोधन", "जागरण गीत" तथा "नवयुग का अवतरण" तीन शीर्षकों के अंतर्गत विभाजित किया गया है ।
Table of content
A.उदबोधन
1. आगे बढ़ो
2. जहर न घोलो
3. आस का दीपक
4. बहुत सो लिए
5. थके पथिक से
6. ज्ञान की मशाल
7. युगऋषि तुम्हें बुलाता
8. भटक रहा क्यों
9. अगर चाहते हो
10. क्या करूँ?
11. माँ के लाल
12. विश्राम कहाँ?
13. सुखद अंत
14. जागो
15. विडंबना
16. सुनियोजन
17. निर्माण अथवा सुरक्षा
18. मानवता की पुकार
19. आह्वान गीत
20. छद्मवेषी तम
21. चेतना के कण
22. आत्म-विश्वास जगाओ
23. निराशा का विषधर
24. विश्वास-बल
25. दैवी नौका
26. आत्मप्रतिष्ठा
27. आत्मतत्त्व
28. शरद-संदेश
29. वर्तमान साधें
30. आह्वान हो रहा
B.जागरण - गीत
C.नवयुग का अवतरण
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Akhand Jyoti Sansthan, Mathura |
Page Length |
390 |
Dimensions |
27 X 20 cm |