Preface
आने वाला समय प्रज्ञायुग कहलाएगा । इस नवयुग, प्रज्ञायुग में अबकी अपेक्षा असाधारण परिवर्तन हर विषय में दृष्टिगोचर होगा, दिन और रात जैसा । इन दिनों प्राय: हर व्यक्ति का दृष्टिकोण संकीर्ण स्वार्थपरता का पूर्तिपरक है । उनका चिंतन यही रहता है कि जिस तरह भी हो, लोभ, मोह और अहंकार की पूर्ति होनी चाहिए । वासना और तृष्णा की पूर्ति के अधिक से अधिक साधन जुटाना चाहिए । भले ही इसके लिए घृणित से घृणित कुकर्म करने पड़े । अपने कर्त्तव्यों और दूसरों के अधिकार की उपेक्षा करनी पड़े । स्वार्थ के अतिरिक्त और कुछ सूझता नहीं । नीति और अनीति का अंतर करने वाले विवेक की उपेक्षा करने में मनुष्य को तनिक भी संकोच नहीं होता । ईश्वर, धर्म, परलोक और कर्मफल के संबंध में समझा जाता है कि मानो उसका अब कोई अस्तित्व ही न रह गया हो । मर्यादाओं और वर्जनाओं की कसौटी तो मानो अनावश्यक ही हो गई हो । उनका कोई अस्तित्व ही न रहा हो ।
परिवर्तित नवयुग में इन सबकी सत्ता फिर से उसी प्रकार मान्यता प्राप्त करेगी, जैसे ग्रीष्म की तपन के पश्चात वर्षा ऋतु आती है और हरीतिमा का मखमली फर्श सब ओर बिछ जाता है । प्यासी धरती पर सब ओर जलाशय भरे हुए दिखते हैं ।
मनुष्य आत्मा की सत्ता स्वीकार करेगा और परमात्मा के अस्तित्व को अक्षुण्ण मानेगा । उसे कर्मफल का स्मरण भी रहेगा और उचित- अनुचित का अंतर भी सूझ पड़ेगा । कमाई के लिए धन ही एकमात्र संपदा न रहेगी, वरन धर्म का पुण्य-परमार्थ का संचय भी आवश्यक माना जाएगा । मनुष्य मदोन्मत हाथी की तरह नहीं चलेगा, वरन महावत का अंकुश भी सिर पर विद्यमान देखेगा ।
Table of content
1.कैसा होगा आने वाला प्रज्ञायुग ?
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug Nirman Yojna Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojna Trust, |
Page Length |
24 |
Dimensions |
12 X 18 cm |