Preface
जीवन रोगों के भार और मार से बुरी तरह टूट गया है ।। जब तन के साथ मन भी रोगी हो गया हो, तो इन दोनों के योगफल के रूप में जीवन का यह बुरा हाल भला क्यों न होगा ? ऐसा नहीं है कि चिकित्सा की कोशिशें नहीं हो रही ।। चिकित्सा तंत्र का विस्तार भी बहुत है और चिकित्सकों की भीड़ भी भारी है ।। पर समझ सही नहीं है ।। जो तन को समझते हैं, वे मन के दर्द को दरकिनार करते हैं ।। और जो मन की बात सुनते हैं, उन्हें तन की पीड़ा समझ नहीं आती ।। चिकित्सकों के इसी द्वन्द्व के कारण तन और मन को जोड़ने वाली प्राणों की डोर कमजोर पड़ गयी है ।।
पीड़ा बढ़ती जा रही है, पर कारगर दवा नहीं जुट रही ।। जो दवा ढूँढी जाती है, वही नया दर्द बढ़ा देती है ।। प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों में से प्राय: हर एक का यही हाल है ।। यही वजह है कि चिकित्सा की वैकल्पिक विधियों की ओर सभी का ध्यान गया है ।। लेकिन एक बात जिसे चिकित्सा विशेषज्ञों को समझना चाहिए उसे नहीं समझा गया ।। समझदारों की यही नासमझी सारी आफतो- मुसीबतों की जड़ है ।। यह नासमझी की बात सिर्फ इतनी है कि जब तक जिन्दगी को सही तरह से नहीं समझा जाता, तब तक उसकी सम्पूर्ण चिकित्सा भी नहीं की जा सकती ।।
Table of content
1. आध्यात्मिक चिकित्सा
2. अथर्वण विद्या की चमत्कारी क्षमता
3. सद्गुरु की कृपा से तरते हैं भवरोग
4. मानवी जीवन आध्यात्मिक रहस्यों से भरा
5. आध्यात्मिक चिकित्सा का मूल है आस्तिकता
6. नैतिकता की नीति, स्वास्थ्य की उत्तम डगर
7. कर्मफल के सिद्धान्त को समझना भी अनिवार्य
8. चित्त के संस्कारों की चिकित्सा
9. पूर्वजन्म के दुष्कर्मों का परिमार्जन जरूरी
10. प्रारब्ध का स्वरूप एवं चिकित्सा में स्थान
11. इन ग्रन्थों के मंत्रों में छिपे पडे हैं अति गोपनीय प्रयोग
12. आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक
13. आध्यात्मिक निदान-पंचक
14. चिकित्सक का व्यक्तित्व तपःपूत होता है
15. ज्योतिर्विज्ञान की अति महती भूमिका
Author |
Dr. Pranav Pandaya |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
124 |
Dimensions |
14 cm x 21.5 cm |