Preface
पातंजलि योग को राजयोग कहा जाता है । उसके आठ अंग,आठ भाग हैं । इन आठ अंगों की गणना इस प्रकार होतीहै-(१) यम (२) नियम (३) आसन (४) प्राणायाम (५) प्रत्याहार(६) धारणा (७) ध्यान (८) समाधि । आवश्यक नहीं कि इन्हें एक के बाद ही दूसरे इस क्रम में प्रयोग किया जाए । साधना विधि ऐसी बननी चाहिए कि इन सभी का मिला-जुला प्रयोग चलता रहे । जिस प्रकार अध्ययन, व्यायाम, व्यापार, कृषि आदि को एक ही व्यक्ति एकही समय में योजनाबद्ध रूप से कार्यान्वित करता रह सकता है ।उसी प्रकार राजयोग के अंगों को भी दिनचर्या में उनका स्थान एवंस्वरूप निर्धारित करते हुए सुसंचालित रखा जा सकता है ।यम पाँच हैं-(१) अहिंसा (२) सत्य (३) अस्तेय (४) ब्रह्मचर्य(५) अपरिग्रह । इसी प्रकार नियम भी पाँच हैं-(१) शौच (२) संतोष (३) तप (४) स्वाध्याय (५) ईश्वर प्राणिधान । आसन ८४ बताए गएहैं । प्राणायामों की संख्या भी बढी-चढ़ी है । यम नियम तो अनिवार्य हैं, पर शेष क्रिया योगों में से अपनी सुविधानुसार चयन किया जा सकता है । आमतौर से इस साधना का क्रिया पक्ष ही पढ़ा-समझा जाताहै । उसके पीछे जुड़ा हुआ भाव पक्ष उपेक्षित कर दिया जाता है,यह ऐसा ही है जैसे प्राण रहित शरीर का निरर्थक होना । इस पुस्तक में पातंजलि राजयोग के सभी पक्षों पर तात्त्विक प्रकाश डाला गया है ताकि उसके सर्वांगपूर्ण स्वरूप से अवगत हुआ जा सके ।
Table of content
1. पातंजलि योग का तत्त्वदर्शन
2. आहिंसा और उसकी परिधि
3. सत्य की समग्र साधना
4. अस्तेय का दर्शन एवं रहस्य
5. ब्रह्मचर्य शारीरिक ही नहीं मानसिक भी
6. अवांछनीयताओं का प्रतिकार-प्रत्याहार
7. उत्कर्ष के लिए आवश्यक धर्म-धारणाएँ
8. सर्वोपयोगी ध्यान धारणा
9. समाधि मात्र कोतूहल नहीं है
10. स्वाध्याय में प्रमाद न करें
11. ईश्वर का विश्वास और आराधना
12. सरल और सर्वोपयोगी आसन व्यायाम
13. तीन सरल प्राणायाम
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya, Dr.Pranav Pandya |
Edition |
2012 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
48 |
Dimensions |
182mm X 120mm X 3mm |