Preface
आद्य शक्ति गायत्री के गुणगान एवं तत्वदर्शन से भारतीय ग्रन्थ भरे पड़े हैं। भावनात्मक, भक्तिपरक, दार्शनिक, विचारपरक एवं व्यावहारिक क्रियापरक सभी तरह के शास्त्रों में इस मूलाधारा का उल्लेख, विवेचन, स्तवन अपने-अपने ढंग से किया गया है। उनसे इस महाशक्ति का स्वरूप एवं महत्त्व प्रकट होता है और उसका लाभ उठाने की दृष्टि प्राप्त होती है। शास्त्रों में समुद्र में से यहाँ अतीव उपयोगी पाँच प्रसंग बहुमूल्य पंचरत्नों के रूप में इस पुस्तक में जिज्ञासुओं के लिए दिये गये हैं। वे है-(1) गायत्री पञ्जर, (2) गायत्री गीता, (3) गायत्री स्मृति, (4) गायत्री संहिता, तथा (5) गायत्री स्तोत्र। इन पाँचों के मुख्य विषय इस प्रकार हैं-
(1) गायत्री पंजर- इसमें महाशक्ति गायत्री के विराट् स्वरूप का वर्णन है। अनादि, अनन्त, अविनाशी परमात्मा को विभिन्न अवतारों एवं देव स्वरूपों में पहचाना जाता है, किन्तु वह उसी रूप तक सीमित नहीं बन जाता है। उसके सर्वव्यापी, सर्वसमर्थ स्वरूप का बोध उसके विराट् दर्शन से ही होता है। साधक को जब प्रभु-कृपा से दिव्य चक्षु प्राप्त होते हैं तो उसे इष्ट के विराट्स्वरूप का बोध होता है। इस विराट् दर्शन से मनुष्य पापों से सहज ही दूर हो जाता है और अनन्त शक्ति तथा अनन्त आनन्द से अपने आपको जुड़ा हुआ अनुभव करता है।
आद्य शक्ति गायत्री के प्रति शरीरधारी माँ जैसा ममत्व होना भी अच्छी बात है, किन्तु उसके सर्वव्यापी स्वरूप का भान रहना भी आवश्यक है। पंजर का अर्थ होता है-ढाँचा। वेदमाता गायत्री का ढाँचा सम्पूर्ण विश्व है, ऐसा इस स्तोत्र में वर्णन किया गया है। इस तथ्य को हृदयंगम करने वाला साधक सर्वत्र की माँ की सत्ता देखता है। वह सदैव अपने आपको माँ की गोद में बैठा हुआ अनुभव करता है।
Table of content
1. गायत्री पंचरत्न
2. गायत्री गीता
3. गायत्री स्मृति
4. गायत्री संहिता
5. गायत्री स्तोत्र
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
48 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |