Preface
गायत्री जीवन को भव्य बनाने वाली विद्या है । उसकी उपासना से शुद्धि और आत्मा में सतोगुणी प्रकाश की वृद्धि होती है जिससे विद्या, बुद्धि दया करुणा, प्रेम, उदारता शौर्य, साहस और पवित्रता आदि की वृद्धि होती है । अत: प्रत्येक वर्ग के स्त्री-पुरुष को आत्मिक प्रगति और व्यक्तित्व के विकास हेतु गायत्री उपासना करनी चाहिए परन्तु पिछले सैकड़ों वर्षों से महिलाओं को गायत्री उपासना के लिए प्रतिबन्धित किया जाता रहा है । मध्यकाल में देश में जो आध्यात्मिक अन्धकार युग रहा उससे अनेक ऐसी निराधार मान्यताएँ उठ खड़ी हुईं जिनके लिए न कोई विवाद था न बहाना । गायत्री उपासना से इसी युग में नारी जाति को प्रतिबन्धित किया गया । कालान्तर में कुछ स्वार्थी तत्वों ने ऐसे श्लोक भी गढ़ लिए जो वैदिक मान्यताओं का प्रतिवाद करते हैं पर यथार्थ तो यथार्थ ही है । थोड़ी-सी विवेक बुद्धि से भी वस्तुस्थिति को भली प्रकार हृदयंगम किया जा सकता है ।
यह एक तथ्य है कि भारतवर्ष में सदा से स्त्रियों का समुचित मान रहा है उन्हें पुरुषों की अपेक्षा अधिक पवित्र माना जाता रहा है । स्त्रियों को बहुधा "देवी" नाम से सम्बोधित किया जाता है । देवताओं और महान् पुरुषों के साथ उनकी अर्धांगिनियों के नाम भी जुड़े हुए हैं-सीताराम, राधेश्याम, गौरीशंकर, लक्ष्मीनारायण, उमा-महेश, माया-ब्रह्म सावित्री-सत्यवान आदि नामों में नारी को पहला और नर को दूसरा स्थान प्राप्त है । पतिव्रत, दया, करुणा, सेवा, सहानुभूति, स्नेह बात्सल्य, उदारता भक्ति-भावना आदि गुणों में नर की अपेक्षा नारी को सभी विचारवानों ने बढ़ा-चढ़ा माना है ।
Table of content
1. स्त्रियों का गायत्री अधिकार
2. भ्रांतियों का निवारण हो
3. स्त्रियाँ अनाधिकारिणी नहीं हैं
4. महिलाओं के लिए गायत्री उपासना
5. गायत्री उपासना का पूरक बलिवैश्व
6. बलिवैश्व का तत्वदर्शन
7. परिवार में धार्मिकता का वातावरण
Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
48 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |