Preface
देखने, नापने और तौलने में छोटा सा लगने वाला मस्तिष्क, जादुई क्षमताओं और गतिविधियों से भरा पूरा है । उसमें प्राय दस अरब स्नायु कोष है । इनमें प्रत्येक की अपनी विशेषता, अपनी दुनिया और अपनी संभावनाएँ हैं । वे प्राय अपना अभ्यस्त काम निपटाने भर में दक्ष होते हैं । उनकी अधिकांश क्षमता प्रसुप्त स्थिति में पड़ी रहती है । काम न मिलने पर हर चीज निरर्थक रहती है । इसी प्रकार इन कोषों से दैनिक जीवन की आवश्यकताएँ पूरा कर सकने के लिए आवश्यक थोड़ा सा काम कर लिया जाता है, तो उतना ही केरने में वे दक्ष रहते हैं । यदि अवसर मिला होता, उन्हें उभारा और प्रशिक्षित किया गया होता तो वे अबकी अपेक्षा लाखों गुनी क्षमता प्रदर्शित कर सके होते । अलादीन के चिराग की कहानी कल्पित हो सकती है, पर अपना मस्तिष्क सचमुच जादुई चिराग सिद्ध होता है ।
Table of content
1. शरीर से भी विलक्षण मस्तिष्क
2. मस्तिष्क एक जादुई पिटारा
3. न घुटते रहिये, न भयभीत होइये
4. यों नष्ट होती हैं-शक्ति, क्षमताएँ
5. अपने आपका तिरस्कार न कीजिए
6. रोग शारीरिक नहीं, मानसिक
7. मानसिक संतुलन यों साधें
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
112 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |