Preface
गायत्री यज्ञ-उपयोगिता और आवश्यकता भारतीय संस्कृति का उद्गम, ज्ञान-गंगोत्री गायत्री ही है ।भारतीय धर्म का पिता यज्ञ को माना जाता है । गायत्री को सद्विचार और यज्ञ को सत्कर्म का प्रतीक मानते हैं । इन दोनों का सम्मिलित स्वरूप सद्भावनाओं एवं सत्प्रवृत्तियों को बढ़ाते हुए विश्व-शांति एवं मानव कल्याण का माध्यम बनता है और प्राणिमात्र के कल्याण की सम्भावनाएँ बढ़ती हैं । यज्ञ शब्द के तीन अर्थ हैं - १ - देवपूजा, २ -दान, ३ -संगतिकरण । संगतिकरण का अर्थ है - संगठन । यज्ञ का एक प्रमुख उद्देश्य धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को सतयोजन के लिए संगठित करनाभी है । इस युग में संघ शक्ति ही सबसे प्रमुख है । परास्त देवताओं कोपुन : विजयी बनाने के लिए प्रजापति ने उनकी पृथक्-पृथक् शक्तियोंका एकीकरण करके संघ-शक्ति के रूप में दुर्गा-शक्ति का प्रादुर्भाव किया था । उस माध्यम से उनके दिन फिरे और संकट दूर हुए । मानव जाति की समस्या का हल सामूहिक शक्ति एवं संघबद्धता परनिर्भर है, एकाकी-व्यक्तिवादी- असंगठित लोग दुर्बल और स्वार्थी मानेजाते हैं । गायत्री यज्ञों का वास्तविक लाभ सार्वजनिक रूप से, जनसहयोग से सम्पन्न कराने पर ही उपलब्ध होता है । यज्ञ का तात्पर्य है-त्याग, बलिदान, शुभ कर्म । अपने प्रियखाद्य पदार्थों एवं मूल्यवान् सुगंधित पौष्टिक द्रव्यों को अग्रि एवं वायु के माध्यम से समस्त संसार के कल्याण के लिए यज्ञ द्वारा वितरित किया जाता है ।
Table of content
1. गायत्री यज्ञ-उपयोगिता और आवश्यकता
2. यज्ञीय विज्ञान
3. यज्ञीय प्रेरणाएँ
4. गुरु ईश वन्दना
5. साधनादिपवित्रीकरणम्
6. मंगलाचरणम्
7. आचमनम्
8. शिखावन्दनम्
9. प्राणायामः
10. न्यासः
11. पृथ्वी पूजनम्
12. संकल्पः
13. यज्ञोपवीतपरिवर्तनम्
14. यज्ञोपवीतधारणम्
15. जीण्र्पवीत विसर्जनम्
16. चन्दनधारणम्
17. रक्षासूत्रम्
18. कलशपूजनम्
19. कलश प्रार्थना
20. दीपपूजनम्
21. देवावाहनम्
22. सर्वदेवनमस्कारः
23. सर्वदेवनमस्कारः
24. षोडशोपचारपूजनम्
25. स्वस्तिवाचनम्
26. रक्षाविधानम्
27. रक्षाविधानम्
28. गायत्री स्तवनम्
29. अग्निप्रदीपनम्
30. समिधाधानम्
31. जलप्रसेचनम्
32. आज्याहुतिः
33. वसोर्धारा
34. नीराजनम्-आरती
35. घृतावघ्राणम्
36. भस्मधारणम्
37. क्षमा प्रार्थना
38. साष्टांगनमस्कारः
39. शुभकामना
40. पुष्पांजलिः
41. शान्ति-अभिषिंचनम्
42. सूर्याघ्यदानम्
43. प्रदक्षिणा
44. विसर्जनम्
45. गायत्री आरती
46. यज्ञ महिमा
47. युग निर्माण सत्संकल्प
48. जयघोष
49. देवदक्षिणा श्रद्धांजलि
50. यज्ञ आयोजन की आवश्यक वस्तुएँ
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya, |
Edition |
2012 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
48 |
Dimensions |
181mmX121mmX3mm |