Preface
अंतराल की संपदा खोज निकालने का यही उपयुक्त समय
अभी तक विकास के उतने ही चरण उठे और साधन जुटे हैं, जिनसे आदिम वन-मानुष को सभ्यता के युग में प्रवेश करने का अवसर मिल सके। सुविधा साधनों की दृष्टि से अन्य प्राणियों को अभावग्रस्त समझा और मनुष्य को साधन संपन्न कहा जा सकता है। इतने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि मानवी गरिमा का स्वरूप एवं महत्त्व अनुभव-अभ्यास में आ गया। उस उपलब्धि के लिए सच्चे मन से प्रयत्न भी नहीं चले हैं। धर्म और अध्यात्म की चर्चा भर जोर-जोर से होती है; किंतु उसे हृदयंगम करने तथा व्यवहार में उतारने का कोई ठोस एंव कारगर प्रयत्न नहीं होता। आवश्यकता इस बात की है कि अब नये अध्याय का शुभागंभ किया जाए।
वनमानुष ने सभ्य कहलाने की मंजिलें पूरी कर लीं, पर यह तो एक विराम मात्र हुआ। पूर्णता तक पहुँचने के लिए मनुष्य में देवत्व का उदय करना होगा। यही है वह आधार, जिसे योजनाबद्ध रूप से कार्यान्वित किया जाना चाहिए। उपार्जित कौशल एवं वैभव का सदुपयोग बन पड़े, इसके लिए इस स्तर का विकास परिष्कार इन्हीं दिनों चाहिए। संपदा की आवश्यकता समझी गई और उसे उपार्जित करने में सफलता पाई गई पर इतने भर से काम नहीं चलेगा। बीच रास्ते में बैठ जाने से, मझधार में लंगर डालने से बात कहां बनेगी ? अब तो पार जाने और लक्ष्य तक पहुँचने की तैयारी की जानी चाहिए।
प्रकृति संपदा की निर्वाह भर की मात्रा ही प्राणियों को हजम होती है। यदि इससे अधिक कमा लिया गया है या कमाया जाता है। तो यह भी समझा जाना चाहिए कि बारूद के खिलौने बनाने वाले जैसी सावधानी बरतते हैं; ठीक वैसी ही आज के मनुष्य को बरतनी होगी। इस सावधानी के लिए जिस दूरदर्शिता की आवश्यकता है। उसे प्राप्त करने के लिए मानवी चेतना के अंतस्थल को कुरेदा, उभारा और उर्वर बनाया जाना चाहिए।
Table of content
1. अंतराल की संपदा खोज निकालने का यही उपयुक्त समय
2. अचेतन, सचेतन एवं सुपरचेतन
3. आत्मिक प्रगति के चतुर्विध सोपान
4. परिष्कृत व्यक्तित्व पर शोध एवं प्राप्त निष्कर्ष
5. चेतना के विकास हेतु अभीष्ट प्रयास पुरुषार्थ
6. मनः शास्त्र की प्रस्तुत मान्यतायें बदली जायें
7. आत्मिकी सम्मत नैतिकी का प्रतिपादन हो
8. अन्तः करण की सत्ता एवं पूर्ण मानव की परिकल्पना
9. व्यक्तित्व की रहस्यमय परतें
10. आत्मसत्ता की गरिमा एवं लक्ष्य सिद्धि
11. पूर्णता का लक्ष्य बिंदु देवत्व
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
96 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |